बलराम का जन्म यदूकुल के चंद्रवंश में हुआ। कंस ने अपनी प्रिय बहन देवकी का विवाह यदुवंशी वसुदेव से विधिपुर्वक कराया।
जब कंस अपनी बहन को रथ में बिठा कर वसुदेव के घर ले जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई और उसे पता चला कि उसकी बहन का आठवाँ संतान ही उसे मारेगा।
कंस ने अपनी बहन को कारागार (Lockup) में बंद कर दिया और क्रमश: 6 पुत्रों को मार दिया, 7वें पुत्र के रूप में नाग के अवतार बलराम जी थे जिसे श्री हरि ने योगमाया से रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया।
आठवें गर्भ में कृष्ण थे।
श्री कृष्ण की कहानि
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by ramanan dsagar
कंस ने देवकी के 6 पुत्रों का वध किया था.
वे असल में पूर्व जन्म में उसी की छ: संतानें थे. श्री हरिवंश पुराण के अनुसार कंस के पूर्व जन्म यानि कालनेमि के छ्ह पुत्र थे. जिन्होंने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए उपासना शुरू की.
उस समय हिरण्यक्षिपु का राज्य था और वह स्वयं को भगवान मानता था. इसलिए उसे उनकी यह उपासना रास नहीं आई.
हिरण्यक्षिपु ने उन 6 पुत्रों को श्रॉप दिया कि जिस पिता ने तुम को पाल-पोस के बड़ा किया है, वही गर्भ में स्थित होने पर तुम सबका वध करेगा. जब तुम लोग देवकी के गर्भ में जाओगे तब कालनेमि कंस के रूप में तुम्हारा वध कर देगा.
देवकी के 6 पुत्रों की हत्या के बाद उसके 7वें गर्भ में श्रीशेष (अनंत) ने प्रवेश किया था. भगवान विष्णु ने श्रीशेष को बचाने के लिए योगमाया से देवकी का गर्भ ब्रजनिवासिनी वसुदेव की पत्नी रोहिणी के उदर में रखवा दिया. 8वें बेटे की बारी में श्रीहरि ने स्वयं देवकी के उदर से पूर्णावतार लिया.
श्री कृष्ण की कहानि
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by ramanan dsagar
वसुदेव ने अपने आठवें पुत्र को आपने चचेरे भाई ब्रज में वसुदेव के पास पहुंचा दिया और इस तरह श्री कृष्ण नंदलाल कहलाए. कृष्ण का जन्म और कंस के वध बाकी कथाएं जग में प्रचलित हैं. पर हम केवल कंस के चरित्र की बात कर रहे हैं.श्रीकृष्ण के भाई बलराम का जन्म
इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के भाई बलराम जी का जन्म हुआ था। बलरामजी का प्रमुख शस्त्र हल और मूसल है। इसलिए उन्हें हलधर कहते हैं। उन्हीं के नाम पर इस पर्व का नाम हल-षष्ठी पड़ा। क्योंकि इस दिन हल के पूजन का विशेष महत्व है। इस वर्ष 16 अगस्त को हलछठ है।
देश के पूर्वी अंचल में इसे ललई छठ भी कहते हैं। इस व्रत को पुत्रवती स्त्रियां करतीं हैं। इस दिन हल द्वार जुता हुआ फल और अन्न ही खाया जाता है। इस दिन गाय का दूध-दही भी नहीं खाया जाता है। इस दिन भैंस का दूध-दही ही उपयोग में लाया जाता है। इस दिन स्त्रियां एक महुए की दातुन करतीं हैं।
बलभद्र या बलराम श्री कृष्ण के सौतेले बड़े भाई थे जो रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। बलराम, हलधर, हलायुध, संकर्षण आदि इनके अनेक नाम हैं। बलभद्र के सगे सात भाई और एक बहन सुभद्रा थी जिन्हें चित्रा भी कहते हैं। इनका ब्याह रेवत की कन्या रेवती से हुआ था। कहते हैं, रेवती 21 हाथ लंबी थीं और बलभद्र जी ने अपने हल से खींचकर इन्हें छोटी किया था।
इन्हें नागराज अनंत का अंश कहा जाता है और इनके पराक्रम की अनेक कथाएँ पुराणों में वर्णित हैं। ये गदायुद्ध में विशेष प्रवीण थे। दुर्योधन इनका ही शिष्य था। इसी से कई बार इन्होंने जरासंध को पराजित किया था। श्रीकृष्ण के पुत्र शांब जब दुर्योधन की कन्या लक्ष्मणा का हरण करते समय कौरव सेना द्वारा बंदी कर लिए गए तो बलभद्र ने ही उन्हें दुड़ाया था। स्यमंतक मणि लाने के समय भी ये श्रीकृष्ण के साथ गए थे। मृत्यु के समय इनके मुँह से एक बड़ा साँप निकला और प्रभास के समुद्र में प्रवेश कर गया था।
व्रत की कथा
कहते हैं बहुत समय पहले एक गर्भवती ग्वालिन के प्रसव का समय समीप आया। उसे प्रसव पीड़ा होने लगी। उसका दही भी बेचने के लिए रखा हुआ था। ऐसे में वह मटकी लेकर निकल पड़ी। चलते हुए वह एक खेत में पहुंची जहां और उसने एक पुत्र को जन्म दिया।
उसने लड़के कपड़े में लपेटकर वहीं रख दिया और मटकियां उठाकर उठा कर आगे बढ़ गई। उस दिन हरछठ थी। उसका दूध गाय-भैंस का मिला हुआ था पर उसने अपने ग्राहकों को बताया कि दूध भेंस का ही है।
वह तुरंत वापस गई और ग्वालिन ने जिसको भी दूध बेचा था उन्हें सच बता दिया। इस तरह कई लोगों का धर्म भ्रष्ट होने से बच गया। इसके बाद वह खेत में पहुंची तो उसका बच्चा उसे जिंदा मिला। इस तरह ग्वालिन हर वर्ष हरछठ को यह पूजा विधि-विधान से करने लगी।
जहां ग्वालिन ने बच्चे को रखा था वहां एक किसान हल जोत रहा था। उसके बैल बच्चे को देखकर खेत की मेढ़ पर जा पहुंचे। हल की नोक बच्चे पर लगने से बच्चा मर गया।
किसान को यह देखकर बहुत दुख हुआ। ग्वालिन वापस लौटी तो उसने अपने बेटे को मरा हुआ पाया। उसे ध्यान आया कि उसने झूठ बेचकर कई लोगों का धर्म भ्रष्ट किया है इसलिए उसे यह परिणाम हुआ है।