भगवान श्रीकृष्ण के पौराणिक कथा
महाभारत की अनसुनी कहानियाँ | Mahabharata Story in Hindi | Lord Krishna | Mahabharat Yudh Full
5 दिसंबर 2018
महाभारत घटनाओं का संग्रह
महाभारत इतनी सारी घटनाओं का संग्रह है। इनमें से अधिकतर घटनाएं जनता में लोकप्रिय हैं। उनमें से ज्यादातर में, हम यहां आपके लिए ऐसी कुछ घटनाएं पेश कर रहे हैं जिन्हें समय-समय पर याद किया जाता है। हालांकि ऐसी अन्य घटनाएं हैं जिन्हें यहां लिखा जा सकता है।
श्रीकृष्ण को रणछोड़ क्यों कहते हे | मुचुकुन्द और कालयवन की कथा | Kalyavan or Muchukund Katha
भगवान कृष्ण को रनछोड़ क्यों कहा जाता है : जरासंध ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए अपने मित्र कालयवन को बुलाया था। कालयवन की सेना ने मथुरा को घेर लिया। उसने मथुरा नरेश कृष्ण के नाम संदेश भेजा और कालयवन को युद्ध के लिए एक दिन का समय दिया। श्रीकृष्ण ने उत्तर में संदेश भेजा कि युद्ध केवल कृष्ण और कालयवन में हो, सेना को व्यर्थ क्यूं लड़ाएं। कालयवन ने स्वीकार कर लिया।
अक्रूरजी और बलरामजी ने कृष्ण को इसके लिए मना किया, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें कालयवन को शिव द्वारा दिए वरदान के बारे में बताया और यह भी कहा कि उसे कोई भी हरा नहीं सकता। श्रीकृष्ण ने यह भी बताया कि कालयवन राजा मुचुकुंद द्वारा मृत्यु को प्राप्त होगा। मुचुकंद एक वरदान के चलते चिरनिद्रां में सो रहे है। उन्हें जो जगायेगा वह मृत्यु को प्राप्त होगा। जब कालयवन और कृष्ण में द्वंद्व युद्ध का जय हो गया तब कालयवन श्रीकृष्ण की ओर दौड़ा। श्रीकृष्ण तुरंत ही दूसरी ओर मुंह करके रणभूमि से भाग चले और कालयवन उन्हें पकडऩे के लिए उनके पीछे-पीछे दौडऩे लगा। इस प्रकार भगवान बहुत दूर एक पहाड़ की गुफा में घुस गए। उनके पीछे कालयवन भी घुसा। वहां उसने एक दूसरे ही मनुष्य को सोते हुए देखा। उसे देखकर कालयवन ने सोचा, मुझसे बचने के लिए श्रीकृष्ण इस तरह भेष बदलकर छुप गए हैं। वह पुरुष बहुत दिनों से वहां सोया हुआ था। पैर की ठोकर लगने से वह उठ पड़ा और धीरे-धीरे उसने अपनी आंखें खोलीं। इधर-उधर देखने पर पास ही कालयवन खड़ा हुआ दिखाई दिया। वह पुरुष इस प्रकार ठोकर मारकर जगाए जाने से कुछ रुष्ट हो गया था। उसकी दृष्टि पड़ते ही कालयवन के शरीर में आग पैदा हो गई और वह क्षणभर में जलकर राख का ढेर हो गया। कालयवन को जो पुरुष गुफा में सोए मिले, वे इक्ष्वाकुवंशी महाराजा मांधाता के पुत्र राजा मुचुकुंद थे। इस तरह कालयवन का अंत हो गया। इस घटना के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण का नाम रणछोड़ पड़ा।
महाभारत क्यों गांधारी ने भगवान श्रीकृष्ण को श्राप दिया | CURSE FROM GANDHARI FOR KRISHNA| MAHABHARAT
गांधारी ने कृष्ण को कैसा श्राप दिया : लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या कृष्ण के वंश का नाश हो जाने का शाप दिया गया था या कि संपूर्ण यदुवंश के नाश का? यदि गांधारी के शाप से यदुवंशियों का नाश हो गया था तो फिर आज भी क्यों यदुवंशी पाए जाते हैं। यदि पाए जाते हैं तो क्या ये सभी यदुवंशी नहीं हैं?
दो श्राप मिले थे श्रीकृष्ण को महाभारत के युद्ध के बाद भगवान कृष्ण ने गांधारी को अपने सौ पुत्रों की मृत्यु के शोक में विलाप करते हुए देखा तो वे सांत्वना देने के उद्देश्य से उनके पास गए। भगवान श्रीकृष्ण को देखते ही गांधारी ने क्रोधित होकर उन्हें शाप दिया कि तुम्हारे कारण जिस प्रकार से मेरे सौ पुत्रों का नाश हुआ है, उसी प्रकार तुम्हारे कुल-वंश का भी आपस में एक-दूसरे को मारने के कारण नाश हो जाएगा। लेकिन गांधारी ने यदुवंश के नाश का शाप नहीं दिया था।
द्रौपदी स्वयंवर | मछली की आँख का लक्ष्य | Draupadi Swayamvar | hit fish's eye
पांचाली का स्वयंवर : लाक्षागृह से जीवित बच निकलने के पश्चात् पाण्डव अपनी माता कुन्ती सहित वहाँ से एकचक्रा नगरी में जाकर मुनि के वेष में एक ब्राह्मण के घर में निवास करने लगे। यहीं पर भीम ने बक नामक राक्षस का वध किया। पाण्डवों को एकचक्रा नगरी में रहते कुछ काल व्यतीत हो गया तो एक दिन उनके यहाँ भ्रमण करता हुआ एक ब्राह्मण आया। पाण्डवों ने उसका यथोचित सत्कार करके पूछा- "देव! आपका आगमन कहाँ से हो रहा है?” ब्राह्मण ने उत्तर दिया- "मैं महाराज द्रुपद की नगरी पांचाल से आ रहा हूँ। वहाँ पर द्रुपद की कन्या द्रौपदी के स्वयंवर के लिये अनेक देशों के राजा-महाराजा पधारे हुये हैं।” उस ब्राह्मण के प्रस्थान करने के पश्चात् पाण्डवों से भेंट करने वेदव्यास आ पहुँचे। वेदव्यास ने पाण्डवों को आदेश दिया कि तुम लोग पांचाल चले जाओ। वहाँ द्रुपद कन्या पांचाली का स्वयंवर होने जा रहा है। वह कन्या तुम लोगों के सर्वथा योग्य है, क्योंकि पूर्वजन्म में उसने भगवान शंकर की तपस्या की थी और उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उसे अगले जन्म में पाँच उत्तम पति प्राप्त होने का वरदान दिया था। वह देविस्वरूपा बालिका सब भाँति से तुम लोगों के योग्य ही है। तुम लोग वहाँ जाकर उसे प्राप्त करो।" इतना कहकर वेद व्यास वहाँ से चले गये। पांचाल जाते हुए मार्ग में पाण्डवों की भेंट धौम्य नामक ब्राह्मण से हुई और वे उसके साथ ब्राह्मणों का वेश धर कर द्रुौपदी के स्वयंवर में पहुँचे। स्वयंवर सभा में अनेक देशों के राजा-महाराजा एवं राजकुमार पधारे हुये थे। एक ओर श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलराम तथा गणमान्य यदुवंशियों के साथ विराजमान थे। वहाँ वे ब्राह्मणों की पंक्ति में जाकर बैठ गये। कुछ ही देर में राजकुमारी द्रौपदी हाथ में वरमाला लिये अपने भाई धृष्टद्युम्न के साथ उस सभा में पहुँचीं। धृष्टद्युम्न ने सभा को सम्बोधित करते हुये कहा- "हे विभिन्न देश से पधारे राजा-महाराजाओं एवं अन्य गणमान्य जनों! इस मण्डप में स्तम्भ के ऊपर बने हुए उस घूमते हुये यंत्र पर ध्यान दीजिये। उस यन्त्र में एक मछली लटकी हुई है तथा यंत्र के साथ घूम रही है। आपको स्तम्भ के नीचे रखे हुए तैलपात्र में मछली के प्रतिबिम्ब को देखते हुए बाण चलाकर मछली के नेत्र को लक्ष्य बनाना है। मछली के नेत्र का सफल भेदन करने वाले से मेरी बहन द्रौपदी का विवाह होगा।”
एक के बाद एक सभी राजा-महाराजा एवं राजकुमारों ने मछली पर निशाना साधने का प्रयास किया, किन्तु सफलता हाथ न लगी और वे कान्तिहीन होकर अपने स्थान में लौट आये। इन असफल लोगों में जरासंध, शल्य, शिशुपाल तथा दुर्योधन, दुःशासन आदि कौरव भी सम्मिलित थे। कौरवों के असफल होने पर दुर्योधन के परम मित्र कर्ण ने मछली को निशाना बनाने के लिये धनुष उठाया, किन्तु उन्हें देखकर द्रौपदी बोल उठीं- "यह सूतपुत्र है, इसलिये मैं इसका वरण नहीं कर सकती।” द्रौपदी के वचनों को सुनकर कर्ण ने लज्जित होकर धनुष बाण रख दिया। उसके पश्चात् ब्राह्मणों की पंक्ति से उठकर अर्जुन ने निशाना लगाने के लिये धनुष उठा लिया। एक ब्राह्मण को राजकुमारी के स्वयंवर के लिये उद्यत देख वहाँ उपस्थित जनों को अत्यन्त आश्चर्य हुआ, किन्तु ब्राह्मणों के क्षत्रियों से अधिक श्रेष्ठ होने के कारण से उन्हें कोई रोक न सका। अर्जुन ने तैलपात्र में मछली के प्रतिबिम्ब को देखते हुए एक ही बाण से मछली के नेत्र को भेद दिया। द्रौपदी ने आगे बढ़कर अर्जुन के गले में वरमाला डाल दी। एक ब्राह्मण के गले में द्रौपदी को वरमाला डालते देख समस्त क्षत्रिय राजा-महाराजा एवं राजकुमारों ने क्रोधित होकर अर्जुन पर आक्रमण कर दिया। अर्जुन की सहायता के लिये शेष पाण्डव भी आ गये और पाण्डवों तथा क्षत्रिय राजाओं में घमासान युद्ध होने लगा। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पहले ही पहचान लिया था, इसलिये उन्होंने बीच-बचाव करके युद्ध को शान्त करा दिया। दुर्योधन ने भी अनुमान लगा लिया कि निशाना लगाने वाला अर्जुन ही रहा होगा और उसका साथ देने वाले शेष पाण्डव रहे होंगे। वारणावत के लाक्षागृह से पाण्डवों के बच निकलने पर उसे अत्यन्त आश्चर्य होने लगा।
महाभारत वीर बर्बरीक (खाटू श्याम) | Barbarik Story
Mahabharat Full Episode Ramanand Sagar
खाटू श्याम : युद्ध के मैदान में भीम पौत्र बर्बरीक दोनों खेमों के मध्य बिन्दु, एक पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए और यह घोषणा कर डाली कि मैं उस पक्ष की तरफ से लडूंगा जो हार रहा होगा। बर्बरीक का एक तीर ही युद्ध के लिए काफी था। उसके इस चमत्कार को देखकर भगवान श्रीकृष्ण यह सोचने लगते हैं कि बर्बरीक प्रतिज्ञावश हारने वाले का साथ देगा। यदि कौरव हारते हुए नजर आए तो फिर पांडवों के लिए संकट खड़ा हो जाएगा और यदि जब पांडव बर्बरीक के सामने हारते नजर आए तो फिर वह पांडवों का साथ देगा। इस तरह वह दोनों ओर की सेना को एक ही तीर से खत्म कर देगा।
तब भगवान श्रीकृष्ण ब्राह्मण का भेष बनाकर सुबह बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुंच गए और दान मांगने लगे। बर्बरीक भी कर्ण की तरह दानवीर था। बर्बरीक ने कहा मांगो ब्राह्मण! क्या चाहिए? ब्राह्मण रूपी कृष्ण ने कहा कि तुम दे न सकोगे। लेकिन बर्बरीक कृष्ण के जाल में फंस गए और कृष्ण ने उससे उसका 'शीश' मांग लिया। बर्बरीक द्वारा अपने पितामह पांडवों की विजय हेतु स्वेच्छा के साथ शीशदान कर दिया। बर्बरीक के इस बलिदान को देखकर दान के पश्चात् श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वर दिया। आज बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है। जहां कृष्ण ने उसका शीश रखा था उस स्थान का नाम खाटू है।
जानिए श्रीकृष्ण ने क्यों किया था एकलव्य का वध...||
Why Did Krishna Kill Eklavya In Hindi
एकलव्य की घटना: एकलव्य भगवान श्रीकृष्ण के पितृव्य (चाचा) के पुत्र थे जिसे बाल्यकाल में ज्योति ष के आधार पर वनवासी भील राज निषादराज को सौंप दिया गया था। महाभारत काल में प्रयाग (इलाहाबाद) के तटवर्ती प्रदेश में सुदूर तक फैला श्रृंगवेरपुर राज्य निषादराज हिरण्यधनु का था। गंगा के तट पर स्थित श्रिंगवारपुर इसकी मजबूत राजधानी थी। एकलव्य अपना अंगूठा दक्षिणा में नहीं देते या गुरु द्रोणाचार्य एकलव्य का अंगूठा दक्षिणा में नहीं मांगते तो इतिहास में एकलव्य का नाम नहीं होता। x गुरुद्रोणाचार्य ने भीष्मपितामह को वचन दिया था कि वे कौरववंश के राजकुमारों को ही शिक्षा देंगे और अर्जुन को वचन दिया था कि तुमसे बड़ा कोई धनुर्धर नहीं होगा। बस इस वचन की लाज रखने के कारण ही गुरुद्रोणाचार्य ने एकलव्य का अपना शिष्य नहीं बनाया और जब उन्हें पता चला कि एकलव्य तो सबकुछ सीख है गया। तब उन्होंने एकलव्य से गुरु दक्षिणा तक अंगूठे की मांग की। द्रोणाचार्य ने जिस अर्जुन को महान सिद्ध करने के लिए एकलव्य का अंगूठा कटवा दिया था, उसी अर्जुन के खिलाफ उन्हें युद्ध लड़ना पड़ा और उसी अर्जुन के पुत्र की हत्या का कारण भी वे ही बने थे और उसी अर्जुन के श्री कृष्ण के हाथों वे मृत्यु को प्राप्त किया गया था।
दुर्योधन जब इंद्रप्रस्थ महल में पानी में गिरा और द्रोपदी ने मजाक उड़ाया।
इंद्रप्रस्थ में दुर्योधन : पांडव अपने रहने के लिए इंद्रप्रस्थ नामक एक शहर बसाते हैं और उसमें एक मायावी महल बनवाते हैं। यह महल मायावी असुर मयासुर बनाता है। इस महल की खासियत यह थी कि जहां पानी का ताल नजर आता था वहां फर्श होता था और जहां फर्श नजर आता था वहां पानी का ताल होता था। दुर्योधन के मन में भी इस महल को देखने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई। वह जैसे ही महल के अंदर प्रवेश किया तो उसको एक भव्य हाल नजर आया। उस हाल में सुंदर फर्श लगा हुआ था और उपर गैलरी में द्रौपदी खड़ी हुई थी। दुर्योधन जैसे ही फर्श पर पैर रखता है वह पानी की ताल में गिर जाता है। दरअसल फर्श जैसा नजर आने वाला वह एक पानी का ताल ही होता है। पानी का ताल अर्थात स्वीमिंग पूल। उपर गैलरी में देख रही द्रौपदी यह घटना देखकर खूब जोर से हंसती है और कहती है, 'अंधे का पुत्र अंधा।'...दुर्योधन इस घटना से बहुत शर्मिंदा होकर खुद को अपमानीत सा समझता है और मन ही मन द्रौपदी से बदला लेने की सोचने लगता है।
लाक्षागृह के भस्म होने का समाचार जब हस्तिनापुर पहुँचा !! Shri Krishna Story 2
लाक्षागृह कांड : शकुनी की नीति के तहत दुर्योधन ने पांडवों के रुकने के लिए एक ऐसा महल बनवाया था, जो लाख से बना थे जिसे बाद में लाक्षागृह कहा गया। दुर्योधन की योजना के अनुसार इस महल में रात में चुपचाप से आग लगा दी गई थी ताकि सोते हुए पांडवों की इस महल में ही जलकर मृत्यु हो जाए। किन्तु पांडवों के जासूसों ने उन्हें इस योजना की सूचना देदी और वे रात को ही एक गुप्त सुरंग से निकल भागे। ये सुरंग आज भी है, जो हिंडन नदी के किनारे पर खुलती है। लाख से बनें महल के अवशेष आज भी बरनावा में पाए जाते हैं। यह बरनावा या वारणावत नामक स्थान मेरठ जिले में स्थित है।
महाभारत जब हनुमान जी ने भीम का घमंड तोडा। Bhima's Ego Broken by Hanumanji
भीम नहीं उठा पाएं थे हनुमानजी की पूंछ : सभी को यह घटना तो मालूम ही होगी की बलशाली भीम हनुमानजी की पूंछ नहीं उठा पाए थे। दरअसल, भीम द्रोपदी के कहने पर कमलदल लेने के लिए जंगल में एक रास्ते से जा रहे थे तभी उन्हें रास्ते में लेटे के वानर नजर आया। भीम ने उसे वानर समझकर कहा कि, ऐ वानर! अपनी ये पूंछ हटाकर मुझे निकलने का रास्ता दो। वानर ने कहा कि तुम ही हटा लो पूंछ। भीम के लाख प्रयास के बाद भी जब पूंछ अपने स्थान से नहीं हटी तो भीम समझ गए कि ये कोई साधारण वानर नहीं है। भीम ने क्षमा मांगी। कुछ विद्वान मानते हैं कि यह घटना गंधमादन पर्वत पर घटी थी। हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में (दक्षिण में केदार पर्वत है) स्थित गंधमादन पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में था। सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था। आज यह क्षेत्र तिब्बत के इलाके में है। इस क्षेत्र में दो रास्तों से जाया जा सकता है। पहला नेपाल के रास्ते मानसरोवर से आगे और दूसरा भूटान की पहाड़ियों से आगे और तीसरा अरुणाचल के रास्ते चीन होते हुए। संभवत महाभारत काल में अर्जुन ने असम के एक तीर्थ में जब हनुमानजी से भेंट की थी, तो हनुमानजी भूटान या अरुणाचल के रास्ते ही असम तीर्थ में आए होंगे। हालांकि कुछ विद्वानों अनुसार उत्तराखंड में जोशीमठ से लगभग 25 किलोमीटर दूर हनुमान चट्टी है। यहां भीम और हनुमानजी की भेंट हुई थी और हनुमानजी ने भीम को महाभारत युद्ध में विजयी होने का आशीष दिया था।
JARASANDH VADH | महाभारत भीम जरासंध युद्ध | जब भीम ने जरासंध का वध किया | JARASANDH Vs BHIMA
जरासंध का वध : कंस के ससुर जरासंध का अखाड़ा। मान्यता है की इसी स्थान पर भगवान श्री कृष्ण के इशारे पर भीम ने उसका वध किया था। राजगृह को राजगीर कहा जाता है। रामायण के अनुसार ब्रह्मा के चौथे पुत्र वसु ने 'गिरिव्रज' नाम से इस नगर की स्थापना की। बाद में कुरुक्षेत्र के युद्ध के पहले वृहद्रथ ने इस पर अपना क़ब्ज़ा जमा लिया। वृहद्रथ अपनी शूरता के लिए मशहूर था। जरासंध बहुत बलवान था।जरासंध को कोई मार नहीं सकता था। भीम ने उसके शरीर के दो टूकड़े कर दिए थे लेकिन उसके दोनों टूकड़े फिर जुड़ जाते थे। तब श्रीकृष्ण ने एक तिनके के सहरे भीम को इशारे से बताया कि तिनके तो दो टूकड़े करके दाएं टूकड़े को बाईं और और बाएं टूकड़े को दाईं ओर फेंक दो। भीम को यह इशारा समझ में आ गया और उसने तब दूसरी बार जरासंध को पकड़कर उसके जब दो फाड़ किये तो दोनों फाड़ को एक दूसरे की विपरित दिशा में फेंक दिया।
द्रौपदी चीरहरण : महाभारत में द्युतक्रीड़ा के समय युद्धिष्ठिर ने द्रौपदी को दांव पर लगा दिया और दुर्योधन की ओर से मामा शकुनि ने द्रौपदी को जीत लिया। उस समय दुशासन द्रौपदी को बालों से पकड़कर घसीटते हुए सभा में ले आया। जब वहां द्रौपदी का अपमान हो रहा था तब भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और विदुर जैसे न्यायकर्ता और महान लोग भी बैठे थे लेकिन वहां मौजूद सभी बड़े दिग्गज मुंह झुकाएं बैठे रह गए। इन सभी को उनके मौन रहने का दंड भी मिला। देखते ही देखते दुर्योधन के आदेश पर दुशासन ने पूरी सभा के सामने ही द्रौपदी की साड़ी उतारना शुरू कर दी। सभी मौन थे, पांडव भी द्रोपदी की लाज बचाने में असमर्थ हो गए। तब द्रोपदी ने आंखें बंद कर वासुदेव श्रीकृष्ण का आव्हान किया। श्रीकृष्ण उस वक्त सभा में मौजूद नहीं थे। द्रौपदी ने कहा, ''हे गोविंद आज आस्था और अनास्था के बीच जंग है। आज मुझे देखना है कि ईश्वर है कि नहीं।'' तब श्रीहरि श्रीकृष्ण ने सभी के समक्ष एक चमत्कार प्रस्तुत किया और द्रौपदी की साड़ी तब तक लंबी होती गई जब तक की दुशासन बेहोश नहीं हो गया और सभी सन्न नहीं रह गए। सभी को समझ में आ गया कि यह चमत्कार है।
Karna Vadh | कर्ण वध | आग्नेय,वरुण,वायु,नाग अस्त्र का प्रयोग | KARNA Vs ARJUNA FIGHT
कर्ण का वध : कवच कुंडल उतर जाने के बाद, अमोघ अस्त्र नहीं होने के बावजूद कर्ण में अपार शक्तियां थी। युद्ध के सत्रहवें दिन शल्य को कर्ण का सारथी बनाया गया। इस दिन कर्ण भीम और युधिष्ठिर को हराकर कुंती को दिए वचन को स्मरण कर उनके प्राण नहीं लेता है। बाद में वह अर्जुन से युद्ध करने लग जाता है। कर्ण तथा अर्जुन के मध्य भयंकर युद्ध होता है। जब अर्जुन बाण चलाते और वह कर्ण के रथ पर लगता तो उसका रथ दूर दूर तक पीछे चला जाता और जब कर्ण बाण चलाते तो अर्जुन का रथ कुछ कदम ही पीछे हटता था और ऐसे में श्रीकृष्ण कर्ण की बहुत तारीफ करते हैं। तब अर्जुन भगवान से कहते हैं कि आप कर्ण की तारीफ कर रहे हैं जिसके बाण से हमारा रथ मात्र कुछ कदम ही पीछे हट रहा है लेकिन मेरे बाण से तो उसका रथ कई गज पीछे जा रहा है। तब ऐसे में कृष्ण मुस्कुरा देते हैं। तभी अचानक कर्ण के रथ का पहिया भूमी में धंस जाता है। इसी मौके का लाभ उठाने के लिए श्रीकृष्ण अर्जुन से तीर चलाने को कहते हैं। बड़े ही बेमन से अर्जुन असहाय अवस्था में कर्ण का वध कर देता है।
महाभारत द्रोणाचार्य वध | DRONACHARY VADH | धृष्टद्युम्न प्रतिज्ञा | अश्वत्थामा हतो नरो वा कुञ्जरो वा
द्रोण वध : भीष्म के शरशय्या पर लेटने के बाद ग्यारहवें दिन के युद्ध में कर्ण के कहने पर द्रोण सेनापति बनकर युद्ध में कोहराम मचा देते हैं। अश्वत्थामा और उसने पिता द्रोण की संहारक शक्ति के बढ़ते जाने से पांडवों के खेमे में दहशत फैल जाती है। पांडवों की हार को देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से भेद का सहारा लेने को कहते हैं। इस योजना के तहत युद्ध में यह बात फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया', लेकिन युधिष्ठिर झूठ बोलने को तैयार नहीं थे। तब अवंतिराज के अश्वत्थामा नामक हाथी का भीम द्वारा वध कर दिया गया। इसके बाद युद्ध में यह बात फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया'। जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा के मारे जाने की सत्यता जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया- 'अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी।' श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद किया जिसके शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य आखिरी शब्द 'हाथी' नहीं सुन पाए और उन्होंने समझा मेरा पुत्र मारा गया। यह सुनकर उन्होंने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि में आंखें बंद कर शोक में डूब गए। यही मौका था जबकि द्रोणाचार्य को निहत्था जानकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट डाला। यह सब कृष्ण की नीति के चलते हुआ, जिसकी बाद में बहुत आलोचना हुई। लेकिन युद्ध में यह बहुत जरूरी था।
महाभारत जयद्रथ वध | जब अर्जुन ने किया जयद्रथ का वध | Mahabharat Ramanand Sagar Episode
जयद्रथ का वध : महाभारत युद्ध में जयद्रथ के कारण अकेला अभिमन्यु चक्रव्यूह में फंस गया था और दुर्योधन आदि योद्धाओं ने एक साथ मिलकर उसे मार दिया था। इस जघन्नय अपराध के बाद अर्जुन प्रण लेते हैं कि अगले दिन सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध नहीं कर पाया तो मैं स्वयं अग्नि समाधि ले लूंगा। इस प्रतिज्ञा से कौरवों में हर्ष व्याप्त हो जाता है और पांडवों में निराशा फैल जाती है। कौरव किसी भी प्रकार से जयद्रथ को सूर्योस्त तक बचाने और छुपान में लग जाते हैं। जब काफी समय तक अर्जुन जयद्रथ तक नहीं पहुंच पाया तो श्रीकृष्ण ने अपनी माया से सूर्य को कुछ देर के लिए छिपा दिया, जिससे ऐसा लगने लगा कि सूर्यास्त हो गया। सूर्यास्त समझकर जयद्रथ खुद ही अर्जुन के सामने हंसता हुआ घमंड से आ खड़ा होता है। तभी उसी समय सूर्य पुन: निकल आता है और अर्जुन तुरंत ही जयद्रथ का वध कर देता है।
DURYODHAN VADH | जब भीम ने गदा युद्ध में दुर्योधन का वध किया | दुर्योधन वध | Bheema vs Duryodhana
दुर्योधन की मृत्यु: यदि दुर्योधन का संपूर्ण शरीर वज्र के समान बन जाता तो फिर उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता था। दरअसल, दुर्योधन की माता गांधारी ने अपने पुत्र को अपने पास नग्न अवस्था में बुलाया था ताकि वह अपनी आंखों के तेज से अपने पुत्र का शरीर वज्र के समान कठोर कर दें। माता की आज्ञा का पालन करने के लिए दुर्योधन भी नग्न अवस्था में ही जा रहा था, तभी रास्ते में श्री कृष्ण ने दुर्योधन को रोककर कहा कि इस अवस्था में माता के सामने जाओगे तो तुम्हें शर्म नहीं आएगी? क्या यह पाप नहीं होगा? यह सुनकर दुर्योधन ने अपने पेट के नीचे जांघ वाले हिस्से पर केले का पत्ता लपेट लिया और इसी अवस्था में गांधारी के सामने पहुंच गया। गांधारी ने अपनी आंखों पर बंधी पट्टी खोलकर दुर्योधन के शरीर पर दिव्य दृष्टि डाली। इस दिव्य दृष्टि के प्रभाव से दुर्योधन की जांघ के अलावा पूरा शरीर लोहे के समान हो गया। युद्ध में भीम ने दुर्योधन की जांघ उखाड़ कर फेंक दी थी जिसके चलते उसकी मृत्यु हो गई थी।
महाभारत जब अर्जुन और अश्वत्थामा ने ब्रह्मशिरा अस्त्र चलाया | Mahabharat Brahmastr
अश्वत्थामा को शाप : महाभारत में द्रोण पुत्र अश्वत्थामा एक ऐसा योद्धा था, जो अकेले के ही दम पर संपूर्ण युद्ध लड़ने की क्षमता रखता था। जब युद्ध के अंत में अश्वत्थामा को सेनापति बनाया तो उसने युद्ध के नियम के विपरित एक रात्रि में ही पांडवों की लाखों सेनाओं, पुत्रों और गर्भ में पल रहे पांडवों के पुत्रों तक को मौत के घाट उतार दिया था।
उसने ब्रह्मास्त्र छोड़े जाने का दुस्साहस भी किया था जिसके जवाब में अर्जुन ने भी ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया था। वेद व्यास दोनों को सलाह दी कि इससे धरती का विनाश हो जाएगा अत: अपने अपे ब्रह्मास्त्र वापस लो। अर्जुन ने तो अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया लेकिन अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र वापस लेना नहीं याद था तो उसने उसे अर्जुन के पुत्र अभिम्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ पर उतारा दिया जिसके चलते गर्भस्त्र शिशु मारा गया। अश्वत्थामा के इस नरसंहार के बाद पांडवों में विरक्ति का भाव आ गया था। वे जीतकर भी हार गए थे। उनका सब कुछ नष्ट हो गया था। यही कारण था कि श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को 3,000 वर्षों तक कोढ़ी के रूप में रहकर भटकने का शाप दे दिया और उत्तरा के गर्भ को पुन: जीवित कर दिया था।