3 जनवरी 2019

कृष्ण को मारने के लिए कंस ने हाथी को भेजा || kans vadh by shree krishna leela

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कृष्ण को मारने के लिए कंस ने हाथी को भेजा || kans vadh by shree krishna leela || ramanand sagar
भगवान श्रीकृष्ण के मामा का नाम था कंस। यह कंस न तो राक्षस, न ही असुर और न ही दावव था। सभी जानते हैं कि कंस के बारे में यह भविष्यवाणी कही गई थी कि उनकी बहन देवका एक पुत्र ही उसे मारेगा। बस इसी भविष्यवाणी के कारण वह दहशत में रहने लाग था।

कृष्ण को मारने के लिए कंस ने हाथी को भेजा 

 kans vadh by shree krishna leela


  कंस अपने पूर्व जन्म में 'कालनेमि' नामक असुर था जिसे भगवान विष्णु ने मारा था। कालनेमि विरोचन का पुत्र था। देवासुर संग्राम में कालनेमि ने भगवान हरि पर अपने सिंह पर बैठे ही बैठे बड़े वेग से त्रिशूल चलाया, पर हरि ने उस त्रिशूल को पकड़ लिया और उसी से उसको तथा उसके वाहन को मार डाला। अन्य कथा अनुसार युद्ध में उसने अनेक प्रकार की माया फैलाई और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। वर तारकामय में हरि के चक्र में मारा गया।

   कालनेमि ने कंस के रूप में उग्रसेन के यहां जन्म लिया। कंस शूरसेन जनपद के राजा अन्धक-वृष्णि संघ के गण मुख्य उग्रसेन का पुत्र और भगवान कृष्ण का मामा था। अंधक, अहीर, भोज, स्तवत्ता, गौर आदि 106 कुलों को मिलाकर उस काल में यादव गणराज्य कहा जाता था। उग्रसेन यदुवंशीय राजा आहुक के पुत्र थे। इनके नौ पुत्र और पांच पुत्रियां थी। कंस भाइयों में सबसे बड़ा था। उग्रसेन की अन्य पुत्रियां वसुदेव के छोटे भाइयों से ब्याही गई थीं। उग्रसेन की माता माता काशीराज की पुत्री काश्या थीं, जिनके देवक और उग्रसेन दो पुत्र थे।

  कंस ने अपने पिता उग्रसेन को राज पद से हटाकर जेल में डाल दिया था और स्वयं शूरसेन जनपद का राजा बन बैठा था। शूरसेन जनपद के अंतर्गत ही मथुरा आता है। कंस के काका शूरसेन का मथुरा पर राज था। कंस ने मथुरा को भी अपने शासन के अधीन कर लिया था और वह प्रजा को अनेक प्रकार से पीड़ित करने लगा।

  आर्यावर्त के तत्कालीन सर्वप्रतापी राजा जरासंध की पुत्री से कंस ने विवाह कर अपनी शक्ति को बढ़ा लिया था। जरासंध पौरव वंश का था और मगध के विशाल साम्राज्य का शासक था। कंस को जरासंध ने 'अस्ति' और 'प्राप्ति' नामक अपनी दो लड़कियां ब्याह दी थीं। इस प्रकार दोनों में घनिष्ठ संबंध बन गया था।


   चेदि के यादव वंशी राजा शिशुपाल को भी जरासंध ने अपना गहरा मित्र बना लिया। यह शिशुपाल भगवान श्रीकृष्ण की बुआ का लड़का था और इसकी आस्था भी कंस के प्रति थी। कंस ने उत्तर-पश्चिम में कुरुराज दुर्योधन को भी अपना सहायक बना रखा था। जरासंध के कारण पूर्वोत्तर की ओर असम के राजा भगदन्त से भी उसने मित्रता जोड़ रखी थी।

  कंस के काका शूरसेन का मथुरा पर राज था और शूरसेन के पुत्र वसुदेव का विवाह कंस की बहन देवकी से हुआ था। श्रीकृष्ण के पिता का नाम वसुदेव और माता का नाम देवकी था। जन्म के पश्चात् उनका पालन-पोषण नन्द बाबा और यशोदा माता के द्वारा हुआ। वसुदेव यादव के पिता का नाम 'राजा सूरसेन' था तथा बाबा नन्द यादव के पिता का नाम राजा पार्जन्य था। नन्द बाबा पार्जन्य के नौ पुत्रों में से तीसरे पुत्र थे। सूरसेन और पार्जन्य दोनों सगे भाई थे। सूरसेन जी और पार्जन्य जी के पिताजी का नाम था महाराज देवमीढ।

  कंस अपनी चचेरी बहन देवकी से बहुत स्नेह रखता था, लेकिन एक दिन वह देवकी के साथ रथ पर कहीं जा रहा था, तभी आकाशवाणी सुनाई पड़ी- 'जिसे तू चाहता है, उस देवकी का आठवां बालक तुझे मार डालेगा।' इस भयंकर आकाशवाणी को सुनकर कंस भयभीत हो गया और उसने अपनी बहन को मारने के लिए तलवार निकाल ली। वसुदेव ने उसे जैसे-तैसे समझाकर शांत किया और वादा किया कि वे अपने पुत्र उसे सौंप देंगे।

   पहला पुत्र होने पर जब वसुदेव कंस के पास पहुंचे तो कंस ने कहा कि मुझे तो आठवां बेटा चाहिए। बाद में नारद ने बताया कि तुम्हें मारने के लिए देवकी के उदर से स्वयं भगवान विष्णु जन्म लेंगे तो कंस और भयभीत हो गया और उसने वसुदेव और देवकी को कैद कर लिया। बाद में कंस ने एक-एक करके देवकी के 6 बेटों को जन्म लेते ही मार डाला।

  7वें गर्भ में श्रीशेष (अनंत) ने प्रवेश किया था। भगवान विष्णु ने श्रीशेष को बचाने के लिए योगमाया से देवकी का गर्भ ब्रजनिवासिनी वसुदेव की पत्नी रोहिणी के उदर में रखवा दिया। तदनंतर 8वें बेटे की बारी में श्रीहरि ने स्वयं देवकी के उदर से पूर्णावतार लिया। कृष्ण के जन्म लेते ही माया के प्रभाव से सभी संतरी सो गए और जेल के दरवाजे अपने आप खुलते गए। वसुदेव मथुरा की जेल से शिशु कृष्ण को लेकर नंद के घर पहुंच गए।

बाद में कंस को जब पता चला तो उसके मंत्रियों ने अपने प्रदेश के सभी नवजात शिशुओं को मारना प्रारंभ कर दिया। बाद में उसे कृष्ण के नंद के घर होने का पता चला तो उसने अनेक आसुरी प्रवृत्ति वाले लोगों से कृष्ण को मरवाना चाहा, पर सभी कृष्ण तथा बलराम के हाथों मारे गए। तब योजना अनुसार कंस ने एक समारोह के अवसर पर कृष्ण तथा बलराम को आमंत्रित किया। वह वहीं पर कृष्ण को मारना चाहता था, किंतु कृष्ण ने उस समारोह में कंस को बालों से पकड़कर उसकी गद्दी से खींचकर उसे भूमि पर पटक दिया और इसके बाद उसका वध कर दिया। कंस को मारने के बाद देवकी तथा वसुदेव को मुक्त किया और उन्होंने माता-पिता के चरणों में वंदना की |
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