माता सीता ने अपनी पवित्रता का प्रमाण दिया और धरती में समां गयी
रामायण की कहानी
रामायण की कहानी वाकई बहुत अद्भुत है। मुख्यतौर तो यह विष्णु के अवतार भगवान राम द्वारा धरती पर आतंक का पर्याय बन चुके राक्षस राज रावण के वध से जुड़ी है लेकिन इसके भीतर कई ऐसी घटनाएं मौजूद हैं जो वाकई अचंभित करती हैं।
हिंदू पौराणिक कथा रामायण के मुख्य नायक और नायिका श्रीराम और माता सीता है। भगवन श्रीराम के तीन भाई थे। लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। इनमे राम सबसे बड़े थे। इसी प्रकार माता सीता की तीन बहनें थी मांडवी, श्रुतकीर्ति और उर्मिला माता सीता सबसे बड़ी थीं।
जब भगवन श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ किया, तो उस समय रामायण के रचने वाले महर्षि वाल्मीकि ने अपने दोनों शिष्यों लव और कुश को रामायण की कथा सुनने के लिए भेजा। राम ने जीवन पर आधारित रामायण सुनीं। प्रतिदिन वे दोनों को अपने जीवन के बारे में थोड़ा थोड़ा सुनाते थे।
इस तरह जब कहानी के अंत तक पहुंचने तो प्रभु राम ज्ञात हुआ की वह उसी के पुत्र हैं। राम ने कहा सीता यदि निष्पाप हैं तो सारी सभा में आकर अपनी पवित्रता प्रमाण प्रकट करें। वाल्मीकि सीता को लेकर सभा में गये।
वशिष्ठ ऋषि ने कहा- 'हे राम, मैं वरुण देव का दसवि संतान हूं। अपने जीवन में मैंने कभी भी झूठ नहीं बोला। ये दोनों तुम्हारे पुत्र हैं। यदि मैंने झूठ बोला हो तो मेरी तपस्या का फल मुझे कभी न मिले। मैंने अपनी दिव्य-दृष्टि द्वारा से सीता की पवित्रता देख ली है।' सीता हाथ जोड़कर और निचे सर कहकर बोली, 'हे धरती मां, यदि मैं पतिव्रता हूं तो धरती अभी फट जाये और मैं उसके अंदर समा जाऊं।
सीता के यह कहने पर नागों पर रखा हुआ एक सिंहासन धरती माताका सीना फाड़कर बाहर निकला। इस सिंहासन पर पृथ्वी की देवी बैठी हुई थीं। उन्होंने माता सीता को उस सिंहासन पर बैठाया। सीता के बैठते ही वह सिंहासन धरती के अंदर समा गया। और वह धरती में समां गयी !