'मकरध्वज' था हनुमान जी का पुत्र, उसके जन्म के पीछे है रोचक कहानी
लंका से लौट रहे थे हनुमान जी
आपको वो वाकया तो याद होगा ही कि लंका में हनुमान जी की पूंछ में आग लगा दी गई थी, और उन्होनें इस आग से पूरी लंका ही जला दी। इसके आगे की कहानी यह है कि लंका से लौटते वक़्त जब हनुमान जी आग बुझाने नदी में उतरे, तो गर्मी और आग की वजह से उन्हें बहुत पसीना आ रहा था। उनके पसीने की कुछ बूंदे एक मछली के मुँह में चली गई, जिसने उनके पुत्र को जन्म दिया।
अहिरावण को मिला मकरध्वज
उस काल में अहिरावण पाताललोक में राज करता था। उसके राज्य के लोगों को मछली को काटने पर एक जीव मिला। उन्होनें उसे पाला और नाम दिया मकरध्वज। बड़ा होकर मकरध्वज बहुत ताकतवर हो गया और अहिरावण ने उसे पाताल के द्वार पर खड़े हो उसे रक्षा करने की जिम्मेदारी सौंपी।
कुछ यूँ हुई हनुमानजी और मकरध्वज की मुलाकात
वाल्मीकि रामायण के अनुसार अहिरावण ने राम और लक्ष्मण को कैद कर लिया था। हनुमान उन्हें मुक्त करवाने पाताल लोक पहुंचे जहां उनकी मुलाकात एक जीव हुई, जो आधा वानर और आधा मछली था और स्वयं को हनुमान जी का बेटा कह रहा था। हनुमान जी को पहले आश्चर्य हुआ, लेकिन फिर उन्हें सच ज्ञात हो गया।
हनुमान जी ने किया था मकरध्वज से युद्ध
चूँकि मकरध्वज पाताल की रक्षा कर रहा था, इसलिए अपने फर्ज की खातिर उसने हनुमान जी से कहा कि वो उसे हराकर ही अंदर जा सकते हैं। हनुमान जी अपने बेटे को हरा देते हैं और अहिरावण का वध कर राम और लक्ष्मण को मुक्त करा लेते हैं। इसके बाद वे मकरध्वज को पाताल का राजा बना देते हैं।
हनुमान दंडी मंदिर में एक साथ होती है पिता-पुत्र की आराधना
गुजरात में द्वारका से 2 किलोमीटर दूर स्थित बेटद्वारका में हनुमान मंदिर बना हुआ है। यहाँ हनुमान जी के साथ मकरध्वज की भी पूजा होती है। इसके अलावा गुजरात के पोरबंदर के एक गांव में भी मकरध्वज का मंदिर है।
मकरध्वज बालाजी धाम
राजस्थान में अजमेर के निकट स्थित ब्यावर नगर में यह प्रसिद्ध धाम स्थित है। यहाँ भक्त नौकरी न मिलने से लेकर भूत-प्रेत संबधित कई तरह की समस्याएं लेकर आते हैं।
इसके अलावा ग्वालियर के रानी घाटी जंगलों में बने मंदिर में भी मकरध्वज की प्रतिमा स्थापित की गई है
जेठवा है मकरध्वज के वंशज
क्षत्रियों का जेठवा कुल खुद को मकरध्वज का वंशज मानता है। लोककथाओं के अनुसार मकरध्वज का पुत्र मोदध्वज था, जिसका पुत्र जेठीध्वज था। जेठवा, जेठीध्वज के कुल से होने का दावा करते हैं और हनुमान जी को अपना इष्ट देवता मानते हैं
अब आपके मन में हनुमान जी को पुत्र हुआ कैसे? उसकी माँ कौन थी? हनुमान जी उससे कब मिले? उसके बाद क्या हुआ? जैसे कई सवाल उठ रहे होंगे। तो चलिए इन सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश करते हैं।
लंका से लौट रहे थे हनुमान जी
आपको वो वाकया तो याद होगा ही कि लंका में हनुमान जी की पूंछ में आग लगा दी गई थी, और उन्होनें इस आग से पूरी लंका ही जला दी। इसके आगे की कहानी यह है कि लंका से लौटते वक़्त जब हनुमान जी आग बुझाने नदी में उतरे, तो गर्मी और आग की वजह से उन्हें बहुत पसीना आ रहा था। उनके पसीने की कुछ बूंदे एक मछली के मुँह में चली गई, जिसने उनके पुत्र को जन्म दिया।
अहिरावण को मिला मकरध्वज
उस काल में अहिरावण पाताललोक में राज करता था। उसके राज्य के लोगों को मछली को काटने पर एक जीव मिला। उन्होनें उसे पाला और नाम दिया मकरध्वज। बड़ा होकर मकरध्वज बहुत ताकतवर हो गया और अहिरावण ने उसे पाताल के द्वार पर खड़े हो उसे रक्षा करने की जिम्मेदारी सौंपी।
कुछ यूँ हुई हनुमानजी और मकरध्वज की मुलाकात
चूँकि मकरध्वज पाताल की रक्षा कर रहा था, इसलिए अपने फर्ज की खातिर उसने हनुमान जी से कहा कि वो उसे हराकर ही अंदर जा सकते हैं। हनुमान जी अपने बेटे को हरा देते हैं और अहिरावण का वध कर राम और लक्ष्मण को मुक्त करा लेते हैं। इसके बाद वे मकरध्वज को पाताल का राजा बना देते हैं।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार अहिरावण ने राम और लक्ष्मण को कैद कर लिया था। हनुमान उन्हें मुक्त करवाने पाताल लोक पहुंचे जहां उनकी मुलाकात एक जीव हुई, जो आधा वानर और आधा मछली था और स्वयं को हनुमान जी का बेटा कह रहा था। हनुमान जी को पहले आश्चर्य हुआ, लेकिन फिर उन्हें सच ज्ञात हो गया।
हनुमान जी ने किया था मकरध्वज से युद्ध
हनुमान दंडी मंदिर में एक साथ होती है पिता-पुत्र की आराधना
गुजरात में द्वारका से 2 किलोमीटर दूर स्थित बेटद्वारका में हनुमान मंदिर बना हुआ है। यहाँ हनुमान जी के साथ मकरध्वज की भी पूजा होती है। इसके अलावा गुजरात के पोरबंदर के एक गांव में भी मकरध्वज का मंदिर है।
मकरध्वज बालाजी धाम
हनुमान वैसे तो ब्रह्मचारी थे फिर भी वो एक पुत्र के पिता बने थे हालांकि यह पुत्र वीर्य कि जगह पसीनें कि बूंद से हुआ था। कथा कुछ इस प्रकार है जब हनुमानजी सीता की खोज में लंका पहुंचे और मेघनाद द्वारा पकड़े जाने पर उन्हें रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया। तब रावण ने उनकी पूंछ में आग लगवा दी थी और हनुमान ने जलती हुई पूंछ से लंका जला दी। जलती हुई पूंछ की वजह से हनुमानजी को तीव्र वेदना हो रही थी जिसे शांत करने के लिए वे समुद्र के जल से अपनी पूंछ की अग्नि को शांत करने पहुंचे। उस समय उनके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया था। उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई और उससे उसे एक पुत्र उत्पन्न हुआ। जिसका नाम पड़ा मकरध्वज। मकरध्वज भी हनुमानजी के समान ही महान पराक्रमी और तेजस्वी था उसे अहिरावण द्वारा पाताल लोक का द्वार पाल नियुक्त किया गया था। जब अहिरावण श्रीराम और लक्ष्मण को देवी के समक्ष बलि चढ़ाने के लिए अपनी माया के बल पर पाताल ले आया था तब श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराने के लिए हनुमान पाताल लोक पहुंचे और वहां उनकी भेंट मकरध्वज से हुई। तत्पश्चात मकरध्वज ने अपनी उत्पत्ति की कथा हनुमान को सुनाई। हनुमानजी ने अहिरावण का वध कर प्रभु श्रीराम और लक्ष्मण को मुक्त कराया और मकरध्वज को पाताल लोक का अधिपति नियुक्त करते हुए उसे धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।हनुमान कैसे बने मकरध्वज के पिता जबकि वो ब्रम्हचारी थे
राजस्थान में अजमेर के निकट स्थित ब्यावर नगर में यह प्रसिद्ध धाम स्थित है। यहाँ भक्त नौकरी न मिलने से लेकर भूत-प्रेत संबधित कई तरह की समस्याएं लेकर आते हैं।
इसके अलावा ग्वालियर के रानी घाटी जंगलों में बने मंदिर में भी मकरध्वज की प्रतिमा स्थापित की गई है।
जेठवा है मकरध्वज के वंशज
क्षत्रियों का जेठवा कुल खुद को मकरध्वज का वंशज मानता है। लोककथाओं के अनुसार मकरध्वज का पुत्र मोदध्वज था, जिसका पुत्र जेठीध्वज था। जेठवा, जेठीध्वज के कुल से होने का दावा करते हैं और हनुमान जी को अपना इष्ट देवता मानते हैं।
हनुमान पुत्र मकरध्वज के ज़न्म की कथा :
हनुमान जी भगवान् राम के सबसे बड़े भक्त थे और उनकी निश्छल भक्ति के कई किस्से प्रचलित हैं उनमे से एक किस्सा यह भी है| बजरंग बलि ने आजीवन ब्रम्हचारी रहने का प्रण किया था और रामायण तथा राम चरित मानस में भी उल्लेखित है की उन्होंने विवाह नहीं किया| परन्तु क्या आप जानते हैं की हनुमान जी एक पुत्र भी था और उसका नाम मकरध्वज था| जी हाँ आपने सही पढ़ा मकरध्वज हनुमान जी का ही पुत्र था परन्तु आपके मन में ये सवाल जरूर उठ रहा होगा की अगर हनुमान जी ने विवाह नहीं किया था तो उनका पुत्र कहा से आया|
दरअसल बात उस समय की है जब हनुमान जी माता सीता की खोज में लंका जा रहे थे| हनुमान जी ने भगवान् राम का आशीर्वाद लिया और उनकी आज्ञानुसार उन्होंने लंका की ओर उड़ान भरी| जब वो रावण की लंका पहुंचे और वहां अशोक वाटिका में जाकर माता सीता से मुलाक़ात की पहले तो माता सीता को उनपर विश्वास नहीं हुआ उन्होंने इसे भी रावण की चाल मान लिया| जब हनुमान जी ने माता सीता को श्री राम द्वारा दी गयी चूड़ामणि दी तब जाकर उन्हें ये यकीन हो पाया की हनुमान श्री राम के ही दूत हैं| जब हनुमान जी ने माता सीता का पता लगा लिया तो वानर होने की वजह से अशोक वाटिका में लगे फलों के पेड़ पर चढ़ गए और उत्पात मचाना शुरू कर दिया|
उन्होंने अशोक वाटिका के पेड़ों पर लगे फल खाने शुरू कर दिए उन्होंने कुछ खाया कुछ फेंका और पूरी अशोक वाटिका तहस नहस कर दी| आखिर में वहां के रखवालों ने उन्हें पकड़ कर रावण के सम्मुख प्रस्तुत किया तब उनकी करतूत सुनकर रावण के क्रोध की सीमा न रही| उसने क्रोध में आकर अपने सैनिकों को हनुमान जी की पूँछ में आग लगाने का आदेश दे दिया रावण के सैनिकों ने उसकी आज्ञानुसार हनुमान जी की पूँछ में आग लगा दी| आग लगते ही हनुमान जी ने सारी लंका अपनी पूँछ में लगी आग से जला कर राख कर दी आग की वजह से उन्होंने समुद्र में डुबकी लगाई| आग की गर्मी की वजह से हनुमान के शरीर से पसीने की बूंदे बह कर पानी में एक मछली के पेट में गयी| इससे वो गर्भवती हो गयी और कुछ समय बाद पाताल लोक के राजा अहिरावण के सैनिकों ने उस मछली को पकड़ लिया और उसका पेट चीरने लगे उन्हें मछली के पेट में एक वानर मिला| उस वानर बालक को लेकर वो अहिरावण के पास पहुंचे तो अहिरावण ने उसे पाताल लोक का रक्षक नियुक्त कर दिया|
जब रावण ने देखा की राम को कोई हरा नहीं पा रहा है तो उसने अपने भाई अहिरावण से सहायता मांगी| अहिरावण राम लक्ष्मण का अपहरण कर पाताल ले आया और उनकी बलि चढाने की तैयारी करने लगा| तब हनुमान उनकी तलाश में पाताल लोक पहुंचे पाताल के द्वार पर वानर रक्षक को देख कर उन्होंने उससे उसका परिचय पुछा तो उसने कहा की मैं हनुमान पुत्र मकरध्वज हूँ| तब उन्होंने बताया की मैं ही हनुमान हूँ और मैं ब्रम्हचारी हूँ तुम मेरे पुत्र कैसे हो सकते हो| इसपर उसने अपनी उत्पत्ति की कथा सुनाई तब उन्होंने मकरध्वज को गले से लगा लिया और उसे रास्ते से हटने को कहा| मकरध्वज ने कहा की भले ही मैं आपका पुत्र हूँ परन्तु अभी मैं अपने स्वामी का रक्षक हूँ और मैं आपको अन्दर जाने नहीं दे सकता| तब उन दोनों में भीषण युद्ध हुआ और हनुमान जी ने मकरध्वज को अपनी पूँछ से बाँध लिया और पाताल में प्रवेश कर गए|