2 फ़रवरी 2019

अर्जुन और सुभद्रा की प्रेम कहानी || Mahabharat || shree krishna leela || ramanand sagar

अर्जुन सुभद्रा मिलन


arjun and subhadra love story(अर्जुन और सुभद्रा की प्रेम कहानी)

महाभारत में अर्जुन की चार पत्नियों का जिक्र मिलता है- द्रौपदी, उलुपी, चित्रागंदा और सुभद्रा. चारों पत्नियों में से अर्जुन अपनी दो पत्नियों द्रौपदी और सुभद्रा के साथ रहे. ,सुभद्रा कृष्णा की बहन थीं. भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के सारथी की भूमिका निभाई थी.

जब अर्जुन द्रोणाचार्य से दीक्षा ले रहे थे, उसी दौरान अर्जुन की मुलाकात श्री कृष्ण  से हुई. श्री कृष्ण अक्स सुभद्रा के बारे में बात किया करता था. वह अपनी चचेरी बहन सुभद्रा के रूप और सुंदरता की तारीफ किया करता था. सुभद्रा के रूप और बुद्धि की तारीफ सुनकर अर्जुन को सुभद्रा से प्रेम हो गया. अर्जुन ने सुभद्रा के सामने विवाह का प्रस्ताव रखने की सोची.

लेकिन इसी बीच अर्जुन ने अपने भाइयों के साथ स्वयंवर में द्रौपदी से विवाह कर लिया. युधिष्ठिर और द्रौपदी के साथ रहने के दौरान अर्जुन ने पत्नी की साझेदारी के नियम का उल्लंघन कर दिया जिसके बाद 12 साल की लंबी तीर्थयात्रा पर जाना पड़ा. इसी तीर्थयात्रा के दौरान अर्जुन की मुलाकात नागा राजकुमारी उलुपी से हुई. नाग राजकुमारी ने अर्जुन को धमकी दी कि अगर वह उससे विवाह नहीं करते हैं तो वह कभी उसे अपने पास से जाने नहीं देगी. अर्जुन ने अपनी सहमति दे दी और उससे इरविन नाम की संतान हुई. इसके बाद अर्जुन मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा के संपर्क में आए. मणिपुर के राजा ने अर्जुन से अपनी बेटी के विवाह के लिए स्वीकृति दे दी. लेकिन राजा की एक शर्त थी कि जो भी संतान पैदा होगी वह मणिपुर में ही रहेगी. अर्जुन की पत्नी और पुत्र बाब्रूवहाना दोनों मणिपुर में ही रहे जबकि अर्जुन ने अपनी यात्रा जारी रखी. अर्जुन द्वारका पहुंचे जहां श्रीकृष्ण से मुलाकात होनी थी. अर्जुन को अपने वर्षों पुराने प्रेम सुभद्रा को भी ढूंढने की इच्छा थी.

अर्जुन ने यति का रूप धारण किया और द्वारका पहुंच गए. हालांकि किसी ने अर्जुन को नहीं पहचाना लेकिन श्रीकृष्ण को एहसास हो गया कि अर्जुन पहुंच गए हैं. वह अपने करीबी दोस्त से मिलने के लिए तुरंत निकल पड़े.

अर्जुन एक बरगद के पेड़ के नीचे ध्यानमग्न बैठे थे तभी अर्जुन ने अपने दोस्त और गुरू श्रीकृष्ण को अपनी तरफ आते देखा. इससे पहले कि श्रीकृष्ण कुछ कह पाते, अर्जन ने कहा, आप जानते हैं कि मेरे मन में क्या चल रहा है क्या आप मेरी उससे विवाह कराने में मदद नहीं करेंगे जिससे मैं प्यार करता हूं? श्रीकृष्ण को पता था कि अर्जुन और सुभद्रा के विवाह में सबसे बड़ी बाधा सौतेले भाई बलराम बनेंगे. कौरवों के साथ अपनी दोस्ती को देखते हुए बलराम चाहते थे कि सुभद्रा का विवाह दुर्योधन के साथ हो. श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा, मैं तुम्हारी मुलाकात सुभद्रा से करवाता हूं. अगर सुभद्रा भी तुमसे प्यार करती होगी तो मैं तुम दोनों के भागकर विवाह करने में मदद करवाऊंगा. अर्जुन ने कहा कि क्या यह नीच कृत्य नहीं होगा. तो कृष्ण ने जवाब दिया कि अगर सुभद्रा अपनी रजामंदी देती है तो क्षत्रियों में अपनी दुल्हन का अपहरण करना स्वीकार्य है. योजना बनाई गई कि अर्जुन यति के रूप में ही रहेंगे और कृष्ण बलराम को उनसे मिलाने लाएंगे.

बलराम ने अर्जुन को नहीं पहचाना और उसे एक संन्यासी समझकर तारीफ करने लगा. बलराम ने उसे अपने घर चलने का भी प्रस्ताव दिया. हालांकि अर्जुन ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि वह किसी मानव निवास में प्रवेश नहीं करने की प्रतिज्ञा कर रखी है. वह केवल प्रकृति के आश्रय में रह सकते हैं. इस पर बलराम ने कहा कि आप हमारी बहन सुभद्रा के महल के नजदीक के बाग-बगीचों में रह सकते हैं. इस पर अर्जुन ने तुरंत हामी भर दी औऱ सुभद्रा के बगीचे के एख पेड़ के नीचे अर्जुन रहने पहुंच गए.
सुभद्रा-अर्जुन विवाह
अर्जुन चित्रांगदा से विवाह के बाद तीन वर्ष तक उनके साथ मणिपुर में रहें। चित्रांगदा मणिपुर नरेश चित्रवाहन की पुत्री थी, जो कि अत्यंत रूपवती थी।

प्रभास यात्रा
मणिपुर से पंचतीर्थ होते हुए अर्जुन प्रभास तीर्थ पहुँचे। यह तीर्थ कृष्ण के राज्य में था। कृष्ण ने अर्जुन का स्वागत किया। यहाँ रहते हुए बलराम की बहन सुभद्रा के प्रति अर्जुन के मन में प्रेम पैदा हो गया। कृष्ण को जब इसका पता चला तो उन्होंने अर्जुन से कहा कि तुम सुभद्रा का हरण कर लो क्योंकि यादवों से युद्ध में विजय प्राप्त करके ही तुम सुभद्रा से विवाह कर सकते हो।


सुभद्रा हरण
अर्जुन ने सुभद्रा का हरण कर लिया। यादवों ने अर्जुन का पीछा किया तथा घोर युद्ध छिड़ गया। अर्जुन के सामने यादवों की एक न चली। श्रीकृष्ण ने यादवों को समझा-बुझाकर युद्ध बंद करा दिया। सुभद्रा को लेकर अर्जुन पुष्कर तीर्थ में बहुत दिनों तक रहे।

इंद्रप्रस्थ वापसी
वनवास के दिन पूरे होने के बाद वे सुभद्रा के साथ इंद्रप्रस्थ पहुँचे तो माता कुंती तथा सभी पांडवों की प्रसन्नता की सीमा न रही। अर्जुन को सुभद्रा से अभिमन्यु तथा द्रौपदी से पांडवों को पाँच पुत्र प्राप्त हुए।
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