अद्भुत है हिमालय का रहस्य, इसीलिए आज भी रहते हैं रामायण और महाभारत काल के ये पात्र
Rochak Katha | अद्भुत है हिमालय का रहस्य, इसीलिए आज भी रहते हैं रामायण और महाभारत काल के ये पात्र..
हिमालय का विस्तार कहां तक है?
भारत का प्रारंभिक इतिहास हिमालय से जुड़ा हुआ है। भारत के राज्य जम्मू और कश्मीर, सियाचिन, उत्तराखंड, हिमाचल, सिक्किम, असम, अरुणाचल तक हिमालय का विस्तार है। इसके अलावा उत्तरी पाकिस्तान, उत्तरी अफगानिस्तान, तिब्बत, नेपाल और भूटान देश हिमालय के ही हिस्से हैं। यह सभी अखंड भारत का हिस्सा हैं।
रामायण काल के लोग :
अत्रि : अत्रि नाम से कई ऋषि हो गए हैं। एक है ब्रह्मा के पुत्र अत्रि। इन्होंने कर्दम की पुत्री अनुसूया से विवाह किया था। इनके ही पुत्र दत्तात्रेय, चन्द्रमा और दुर्वासा थे। इनका उनका आखिरी अस्तित्व चित्रकूट में सीता-अनुसूया संवाद के समय तक प्रकट हुआ था। कहते हैं कि वे भी हिमालय के किसी क्षेत्र में रहते हैं।
दुर्वासा की प्रचंड क्रोधग्नि को शिवजी ने शांत किया | अग्नि में जल गए दुर्जन और दुर्मति
दुर्वासा : दुर्वासा ऋषि का नाम सभी ने सुना होगा। उन्होंने सतयुग में इंद्र को भी शाप दिया था। उन्हें राम के युग में भी देखा गया और वे द्वापर युग में श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को भी शाप देते हुए नजर आता हैं। कहते हैं कि वे भी सशरीर आज भी जिंदा हैं और हिमालय के ही किसी क्षेत्र में स्थित हैं।
रामायण कथा - वशिष्ठ जी के आश्रम में राम लक्ष्मण भरत और शत्रुतग्न
वशिष्ठ : वशिष्ठ नाम से कालांतर में कई ऋषि हो गए हैं। एक वशिष्ठ ब्रह्मा के पुत्र हैं, दूसरे इक्क्षवाकु के काल में हुए, तीसरे राजा हरिशचंद्र के काल में हुए और चौथे राजा दिलीप के काल में, पांचवें राजा दशरथ के काल में हुए और छठवें महाभारत काल में हुए। पहले ब्रह्मा के मानस पुत्र, दूसरे मित्रावरुण के पुत्र, तीसरे अग्नि के पुत्र कहे जाते हैं। पुराणों में कुल बारह वशिष्ठों का जिक्र है। हालांकि विद्वानों के अनुसार कहते हैं कि एक वशिष्ठ ब्रह्मा के पुत्र हैं, दूसरे इक्क्षवाकुवंशी त्रिशुंकी के काल में हुए जिन्हें वशिष्ठ देवराज कहते थे। तीसरे कार्तवीर्य सहस्रबाहु के समय में हुए जिन्हें वशिष्ठ अपव कहते थे। चौथे अयोध्या के राजा बाहु के समय में हुए जिन्हें वशिष्ठ अथर्वनिधि (प्रथम) कहा जाता था। पांचवें राजा सौदास के समय में हुए थे जिनका नाम वशिष्ठ श्रेष्ठभाज था। छठे वशिष्ठ राजा दिलीप के समय हुए जिन्हें वशिष्ठ अथर्वनिधि (द्वितीय) कहा जाता था। इसके बाद सातवें भगवान राम के समय में हुए जिन्हें महर्षि वशिष्ठ कहते थे और आठवें महाभारत के काल में हुए जिनके पुत्र का नाम पराशर था। इनके अलावा वशिष्ठ मैत्रावरुण, वशिष्ठ शक्ति, वशिष्ठ सुवर्चस जैसे दूसरे वशिष्ठों का भी जिक्र आता है। वेदव्यास की तरह वशिष्ठ भी एक पद हुआ करता था। लेकिन कहा जाता है कि जो ब्रह्मा के पुत्र थे वे आज भी जीवित हैं और वे ही हर काल में प्रकट होते हैं। उनका स्थान हिमालय के किसी क्षेत्र में बताया जाता है।
राजा बलि : असुरों के राजा बलि या बाली की चर्चा पुराणों में बहुत होती है। वह अपार शक्तियों का स्वामी लेकिन धर्मात्मा था। दान-पुण्य करने में वह कभी पीछे नहीं रहता था। उसकी सबसे बड़ी खामी यह थी कि उसे अपनी शक्तियों पर घमंड था और वह खुद को ईश्वर के समकक्ष मानता था और वह देवताओं का घोर विरोधी था। विष्णु ने कश्यप ऋषि के यहां वामन रूप में जन्म लेकर राजा बलि से दान में तीन पग धरती मांग ली थी। शुक्राचार्य ने राजा बलि को इसके लिए सतर्क किया था लेकिन राजा बलि ने उसे सीधा साधा ब्रामण समझकर तीन पग धरती दान में देने का संकल्प व्यक्त कर दिया। तब वामन रूप विष्णु ने विराट रूप धर दो पगों में तीनों लोक नाप लिए। जिसके बाद तीसरा पग बलि ने अपने सिर पर रखने को कहा जिसके बाद वो पाताल लोक चले गए। राजा बलि से श्रीहरि अतिप्रसन्न हुए और उन्होंने उसे न केवल चिरंजीवी होने का वरदान दिया बल्कि वे खुद राजा बलि के द्वारपाल भी बन गए। कहते हैं कि राजा बलि आज भी जिंदा हैं और वह हिमालय की किसी गुफा या जंगल में रहते हैं।
दोस्तों श्री गणेश और परशुराम जी को आप सब लोग जानते ही होंगे दोस्तों श्री गणेश माता पार्वती और भगवान शिव के छोटे पुत्र है.... और भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठवें आवेष अवतार है जिन्हें स्वयं जिन्हें भगवान शिव ने सारी शस्त्र अस्त्र का ज्ञान दिया है दोस्तों परशुराम के बारे में यह बात प्रसिद्ध है कि उन्होंने तत्कालीन अत्याचारी और निरंकुश क्षत्रिय राजाओं का 21 बार संहार कर पृथ्वी को क्षत्रिय रहित कर दिया था... लेकिन दोस्तों क्या आप जानते हैं कि नहीं भगवान परशुराम और भगवान श्री गणेश में भी एक युद्ध हुआ था....
परशुराम : भगवान विष्णु के छठें अवतार परशुराम कलिकाल के अंत तक सशरीर रहेंगे। परशुराम सतयुग में थे जब उन्होंने अपने फरसे से श्रीगणेशजी का एक दांत तोड़ दिया था। त्रेतायुग में भगवान राम द्वारा शिवजी का धनुष तोड़े जाने के समय वे आए थे और उन्होंने राम को आशीर्वाद दिया था। इसके बाद द्वापर युग में उन्होंने श्रीकृष्ण को चक्र प्रदान किया था। कुछ लोग कहते हैं कि भगवान श्री हरि विष्णु जी के कलियुग में होने वाले कल्कि अवतार में भगवान को भगवान परशुराम जी द्वारा ही वेद-वेदाङ्ग की शिक्षा प्रदान की जाएगी। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिए कहेंगे। भगवान परशुराम जी हनुमान जी, विभीषण की भांति चिरंजीवी
वामन अवतार | सबसे बड़ा दानी - राजा बलि | भगवान विष्णु का वामन अवतार | VAMAN AVATAR
राजा बलि : असुरों के राजा बलि या बाली की चर्चा पुराणों में बहुत होती है। वह अपार शक्तियों का स्वामी लेकिन धर्मात्मा था। दान-पुण्य करने में वह कभी पीछे नहीं रहता था। उसकी सबसे बड़ी खामी यह थी कि उसे अपनी शक्तियों पर घमंड था और वह खुद को ईश्वर के समकक्ष मानता था और वह देवताओं का घोर विरोधी था। विष्णु ने कश्यप ऋषि के यहां वामन रूप में जन्म लेकर राजा बलि से दान में तीन पग धरती मांग ली थी। शुक्राचार्य ने राजा बलि को इसके लिए सतर्क किया था लेकिन राजा बलि ने उसे सीधा साधा ब्रामण समझकर तीन पग धरती दान में देने का संकल्प व्यक्त कर दिया। तब वामन रूप विष्णु ने विराट रूप धर दो पगों में तीनों लोक नाप लिए। जिसके बाद तीसरा पग बलि ने अपने सिर पर रखने को कहा जिसके बाद वो पाताल लोक चले गए। राजा बलि से श्रीहरि अतिप्रसन्न हुए और उन्होंने उसे न केवल चिरंजीवी होने का वरदान दिया बल्कि वे खुद राजा बलि के द्वारपाल भी बन गए। कहते हैं कि राजा बलि आज भी जिंदा हैं और वह हिमालय की किसी गुफा या जंगल में रहते हैं।
रामायण जब जामवंत ने एक ही प्रहार से रावण को घायल किया | RAMAYAN EPISODE BY RAMANAND
SAGAR
जामवंत :
गंधर्व माता और अग्नि के पुत्र जामवन्त को ऋक्षपति कहा जाता है। परशुराम और हनुमान से भी लंबी उम्र है जामवन्तजी कि क्योंकि उनका जन्म सतयुग में राजा बलि के काल में हुआ था। परशुराम से बड़े हैं जामवन्त और जामवन्त से बड़े हैं राजा बलि। जामवन्त सतयुग और त्रेतायुग में भी थे और द्वापर में भी उनके होने का वर्णन मिलता है। जामवंतजीन ने ही हनुमानजी की उनकी शक्तियों को याद दिलाया था। श्रीकृष्ण की एक पत्नीं जामवन्त की पुत्री ही थी। जामवंतजी को चिरंजीवियों में शामिल किया गया है जो कलियुग के अंत तक रहेंगे। कहते हैं कि हिमालय की किसी गुफा में आज भी रहत हैं। संभवत: वह किंपुरुष नामक स्थान है।दोस्तों श्री गणेश और परशुराम जी को आप सब लोग जानते ही होंगे दोस्तों श्री गणेश माता पार्वती और भगवान शिव के छोटे पुत्र है.... और भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठवें आवेष अवतार है जिन्हें स्वयं जिन्हें भगवान शिव ने सारी शस्त्र अस्त्र का ज्ञान दिया है दोस्तों परशुराम के बारे में यह बात प्रसिद्ध है कि उन्होंने तत्कालीन अत्याचारी और निरंकुश क्षत्रिय राजाओं का 21 बार संहार कर पृथ्वी को क्षत्रिय रहित कर दिया था... लेकिन दोस्तों क्या आप जानते हैं कि नहीं भगवान परशुराम और भगवान श्री गणेश में भी एक युद्ध हुआ था....
परशुराम : भगवान विष्णु के छठें अवतार परशुराम कलिकाल के अंत तक सशरीर रहेंगे। परशुराम सतयुग में थे जब उन्होंने अपने फरसे से श्रीगणेशजी का एक दांत तोड़ दिया था। त्रेतायुग में भगवान राम द्वारा शिवजी का धनुष तोड़े जाने के समय वे आए थे और उन्होंने राम को आशीर्वाद दिया था। इसके बाद द्वापर युग में उन्होंने श्रीकृष्ण को चक्र प्रदान किया था। कुछ लोग कहते हैं कि भगवान श्री हरि विष्णु जी के कलियुग में होने वाले कल्कि अवतार में भगवान को भगवान परशुराम जी द्वारा ही वेद-वेदाङ्ग की शिक्षा प्रदान की जाएगी। वे ही कल्कि को भगवान शिव की तपस्या करके उन्हें उनके दिव्यास्त्र को प्राप्त करने के लिए कहेंगे। भगवान परशुराम जी हनुमान जी, विभीषण की भांति चिरंजीवी