श्रीकृष्ण ने सत्यभामा का अहंकार नष्ट किया |
भक्ति और प्रेम के सामने हार गए श्रीकृष्ण
एक दिन सत्राजित का भाई प्रसेन उस मणि को धारण कर शिकार खेलने चला गया। दीर्घकाल तक उसके वापस न आने पर सत्राजित को लगा कि कृष्ण ने उसे मारकर मणि हस्तगत कर ली होगी। ऐसी कानाफूसी सुनकर श्रीकृष्ण को बहुत बुरा लगा। वे प्रसेन को ढूंढने स्वयं जंगल गये।
प्रसेन और घोड़े को मरा देखकर तथा उसके पास ही सिंह के पैरों के निशान देखकर उन्होंने अनुमान लगाया कि उसे सिंह ने मार डाला है। तदनंतर सिंह के पैरों के निशानों का अनुगमन कर ऐसे स्थान पर पहुँचे, जहाँ सिंह मरा पड़ा था तथा रीछ के पांव के निशान थे। वे निशान उन्हें एक अंधेरी गुफ़ा तक ले गये।
वह ऋक्षराज जांबवान की गुफ़ा थी। कृष्ण अकेले ही उसमें घुसे तो देखा कि एक बालक स्यमंतक मणि से खेल रहा है। अनजान व्यक्ति को देखकर बालक की धाय ने शोर मचाया। जांबवान ने वहाँ पहुँचकर कृष्ण से युद्ध आरंभ कर दिया। कालांतर में कृष्ण को पहचानकर जांबवान ने वह मणि तो उन्हें भेंट कर ही दी, साथ-ही-साथ अपनी कन्या जांबवती का विवाह भी कृष्ण से कर दिया।
उग्रसेन की सभा में पहुँचकर कृष्ण ने सत्राजित को बुलवाकर मणि लौटा दी, साथ ही उसे प्राप्त करने में घटित समस्त घटनाएं भी सुना दीं। सत्राजित अत्यंत लज्जित हो गया। उसने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह कृष्ण से कर दिया, साथ ही वह मणि भी देनी चाही। कृष्ण ने कहा कि सत्राजित सूर्य का मित्र है तथा वह मित्र की भेंट है। अत: वही उस मणि को अपने पास रखे, किंतु उससे उत्पन्न हुआ स्वर्ण उग्रसेन को दे दिया करे।
भगवान कृष्ण और सत्यभामा
श्रीमद्भागवत महापुराण का उल्लेख
'श्रीमद्भागवत महापुराण' के अनुसार- श्रीशुकदेवजी कहते हैं- "परीक्षित! तदनन्तर भगवान श्रीकृष्ण ने सत्राजित को राजसभा में महाराज उग्रसेन के पास बुलवाया और जिस प्रकार मणि प्राप्त हुई थी, वह सब कथा सुनाकर उन्होंने वह मणि सत्राजित को सौंप दी। सत्राजित अत्यन्त लज्जित हो गया। मणि तो उसने ले ली, परन्तु उसका मुँह नीचे की ओर लटक गया। अपने अपराध पर उसे बड़ा पश्चाताप हो रहा था, किसी प्रकार वह अपने घर पहुँचा।
उसके मन में आँखों के सामने निरन्तर अपना अपराध नाचता रहता। बलवान के साथ विरोध करने के कारण वह भयभीत हो गया था। अब वह यही सोचता रहता कि "मैं अपने अपराध का मार्जन कैसे करूँ? मुझ पर भगवान श्रीकृष्ण कैसे प्रसन्न हों। मैं ऐसा कौन-सा काम करूँ, जिससे मेरा कल्याण हो और लोग मुझे कोसें नहीं। सचमुच मैं अदूरदर्शी, क्षुद्र हूँ। धन के लोभ से मैं बड़ी मूढ़ता का काम कर बैठा। अब मैं रमणियों में रत्न के समान अपनी कन्या सत्यभामा और वह स्यमन्तक मणि दोनों ही श्रीकृष्ण को दे दूँ। यह उपाय बहुत अच्छा है। इसी से मेरे अपराध का मार्जन हो सकता है और कोई उपाय नहीं है।"
सत्राजित ने अपनी विवेक-बुद्धि से ऐसा निश्चय करके स्वयं ही इसके लिये उद्योग किया और अपनी कन्या तथा स्यमन्तक मणि दोनों ही ले जाकर श्रीकृष्ण को अर्पण कर दीं। सत्यभामा शील-स्वभाव, सुन्दरता, उदारता आदि सद्गुणों से सम्पन्न थी। बहुत-से लोग चाहते थे कि सत्यभामा हमें मिले और उन लोगों ने उन्हें माँगा भी था। परन्तु अब भगवान श्रीकृष्ण ने विधिपूर्वक उनका पाणिग्रहण किया। परीक्षित! भगवान श्रीकृष्ण ने सत्राजित से कहा- "हम स्यमन्तक मणि न लेंगे। आप सूर्य भगवान के भक्त हैं, इसीलिये वह आपके ही पास रहे। हम तो केवल उनके फल के, अर्थात उससे निकले हुए सोने के अधिकारी हैं। वही आप हमें दे दिया करें।"
जब श्रीकृष्ण ने सत्यभामा की सहायता से नरकासुर का वध किया | NARKASUR VADH
भगवान श्रीकृष्ण और सत्यभामा की संतानों के नाम-
महारानी सत्यभामा जी की संतान
पुत्र भानु सुभानु स्वर्भानु प्रभानु भानुमान
चन्द्रभानु अतिभानु वृहद्मानु श्रीभानु प्रतिभानु
पुत्री भानुमति भीममालिक ताम्रपर्णी जलन्धमा
टीका टिप्पणी और संदर्भ
श्रीमद् भागवत, 10।56,
दशम स्कन्ध, अध्याय 56, श्लोक 38-45
संबंधित लेख
कृष्ण कथा
देवकी विवाह · वसुदेव का कंस को वचन · कंस द्वारा देवकी पुत्रों की हत्या · कृष्ण जन्म · करवट उत्सव · पूतना वध · कृष्ण बाललीला · गोकुल में शिव · राधा-कृष्ण का विवाह · मृतिका भक्षण लीला · कृष्ण तथा फल बेचने वाली · माखन चोरी लीला · कृष्ण तथा प्रभावती गोपी · मईया दाऊ बहुत खिजायो · कृष्ण तथा गोबर की टिपकियाँ · तृणावर्त उद्धार · नामकरण संस्कार · ऊखल बंधन लीला · यमलार्जुन मोक्ष · वत्सासुर वध · शकटासुर वध · कागासुर वध · बकासुर वध · अघासुर वध · कृष्ण और ब्रह्मा का मोह · धेनुकासुर वध · कालिय नाग दमन · प्रलंबासुर वध · वेणुगीत · इन्द्रयज्ञ निवारण · दावाग्नि पान · गोवर्धन लीला · रासलीला · शंखचूड़ वध · वृषभासुर वध · केशी उद्धार · व्योमासुर उद्धार · अक्रूर की ब्रजयात्रा · कृष्ण बलराम का मथुरा आगमन · कृष्ण का मथुरा में प्रवेश · कुब्जा उद्धार · कुबलयापीड वध · चाणूर वध · मुष्टिक वध · कंस वध · यज्ञोपवीत तथा गुरुकुल प्रवेश · उग्रसेन को राजपद · उद्धव की ब्रजयात्रा · उद्धव गोपी संवाद और भ्रमरगीत · कृष्ण जरासंध युद्ध · द्वारका निर्माण · कालयवन वध · मुचुकुन्द की कथा · रुक्मिणी सन्देश · रुक्मिणीहरण · कृष्ण-रुक्मिणी विवाह · कृष्ण-जांबवती विवाह · कृष्ण-सत्यभामा विवाह · कृष्ण के अन्य विवाह · भौमासुर उद्धार · कृष्ण के सोलह हज़ार विवाह · कृष्ण सन्तति · नृग उद्धार · पौण्ड्रक उद्धार · कृष्ण की अग्रपूजा · शिशुपाल वध · कृष्ण और सुदामा · यदुवंश को ऋषियों का शाप · यदुवंश का नाश · कृष्ण का अंतिम समय · कृष्ण का स्वधामगमन
कृष्ण की प्रेमिकाएं • कृष्ण का नीला रंग • श्रीकृष्ण द्वारा जीवित लोग • शिव और कृष्ण का जीवाणु युद्ध • कृष्ण की पत्नियां • श्रीकृष्ण के पुत्रों के नाम • कृष्ण और