બુધવાર, 5 ડિસેમ્બર, 2018

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Ramayan: रामायण का सबसे बड़ा योद्धा..? जाने इस योद्धा से जु...

Ramayan: रामायण का सबसे बड़ा योद्धा..? जाने इस योद्धा से जु...: * प्रभु श्रीराम ने भी माना, उनसे बड़े योद्धा थे लक्ष्मण, पढ़ें रोचक कथा...  जब भी श्रीराम का नाम लिया जाता है तो स्वत: ही हनुमानजी ...

रामायण का सबसे बड़ा योद्धा..? जाने इस योद्धा से जुड़े अनसुने रहस्य !

* प्रभु श्रीराम ने भी माना, उनसे बड़े योद्धा थे लक्ष्मण, पढ़ें रोचक कथा... 
जब भी श्रीराम का नाम लिया जाता है तो स्वत: ही हनुमानजी की रामभक्ति का स्मरण हो जाता है। जहां एक ओर हनुमान की रामभक्ति की मिसालें संसार भर में दी जाती है, वहीं श्रीराम के छोटे भाई श्री लक्ष्मणजी की अपने बड़े भ्राता के प्रति भक्ति भी अद्भुत थी। माना जाता है कि जी की कथा के बिना श्री रामकथा पूर्ण नहीं है। 
एक बार अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया -
भगवान श्रीराम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा।

आखिर क्यों श्री राम ने लक्ष्मण को मृत्यु दंड दिया | RAMAYAN 


श्रीराम को आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे, फिर भी उनके मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था। 
अगस्त्य मुनि ने कहा - प्रभु, इंद्रजीत को वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था जो, चौदह वर्षों तक न सोया हो, जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो और चौदह साल तक भोजन न किया हो। >


श्री राम और भक्त हनुमान कैसे हुई प्रथम मिलन


तब श्रीराम बोले - परंतु मैं वनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल देता रहा। मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था, बगल की कुटी में लक्ष्मण थे, फिर सीता का मुख भी न देखा हो और चौदह वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे संभव है? 

મંગળવાર, 4 ડિસેમ્બર, 2018

रामायण का सबसे बड़ा योद्धा..? जाने इस योद्धा से जुड़े अनसुने रहस्य !

* प्रभु श्रीराम ने भी माना, उनसे बड़े योद्धा थे लक्ष्मण, पढ़ें रोचक कथा... 
जब भी श्रीराम का नाम लिया जाता है तो स्वत: ही हनुमानजी की रामभक्ति का स्मरण हो जाता है। जहां एक ओर हनुमान की रामभक्ति की मिसालें संसार भर में दी जाती है, वहीं श्रीराम के छोटे भाई श्री लक्ष्मणजी की अपने बड़े भ्राता के प्रति भक्ति भी अद्भुत थी। माना जाता है कि जी की कथा के बिना श्री रामकथा पूर्ण नहीं है। 
एक बार अगस्त्य मुनि अयोध्या आए और लंका युद्ध का प्रसंग छिड़ गया -
भगवान श्रीराम ने बताया कि उन्होंने कैसे रावण और कुंभकर्ण जैसे प्रचंड वीरों का वध किया और लक्ष्मण ने भी इंद्रजीत और अतिकाय जैसे शक्तिशाली असुरों को मारा।

आखिर क्यों श्री राम ने लक्ष्मण को मृत्यु दंड दिया | RAMAYAN HD BY RAMANAND SAGAR

श्रीराम को आश्चर्य हुआ लेकिन भाई की वीरता की प्रशंसा से वह खुश थे, फिर भी उनके मन में जिज्ञासा पैदा हुई कि आखिर अगस्त्य मुनि ऐसा क्यों कह रहे हैं कि इंद्रजीत का वध रावण से ज्यादा मुश्किल था। 
अगस्त्य मुनि ने कहा - प्रभु, इंद्रजीत को वरदान था कि उसका वध वही कर सकता था जो, चौदह वर्षों तक न सोया हो, जिसने चौदह साल तक किसी स्त्री का मुख न देखा हो और चौदह साल तक भोजन न किया हो। >
जब जांबवान ने खोला महाबली हनुमान की शक्ति का रहस्य HD रामायण
तब श्रीराम बोले - परंतु मैं वनवास काल में चौदह वर्षों तक नियमित रूप से लक्ष्मण के हिस्से का फल-फूल देता रहा। मैं सीता के साथ एक कुटी में रहता था, बगल की कुटी में लक्ष्मण थे, फिर सीता का मुख भी न देखा हो और चौदह वर्षों तक सोए न हों, ऐसा कैसे संभव है? 

સોમવાર, 3 ડિસેમ્બર, 2018

माता सीता ने भोगा था वनवास का कष्ट, जानिए रामायण से जुड़े रोचक तथ्य

 माता सीता ने भोगा था वनवास का कष्ट, जानिए रामायण से जुड़े रोचक तथ्य
   फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी माता सीता की याद करने और उनके पूजन का दिन है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की पत्नी के रूप में माता सीता के संबंध में वाल्मीकि रामायण में कई रोचक बातें बताई गई हैं। वाल्मिकी रामायण में सीताजी की उत्पत्ति, उनकी उम्र और उनकी चारित्रिक विशेषताओं का विस्तार से वर्णन किया गया है। हालांकि ऋषि वाल्मिकी की इस कृति में श्रीराम-सीता के विवाह के कारण सीता स्वयंवर का उल्लेख नहीं है।

दशरथ कैकई संवाद, राम वनवास !! 

 RAMAYAN

सीताजी ने अपने जीवन में अनेक कष्ट उठाए थे। अपने पति के साथ वे सालों तक वन में रहीं, बाद में रावण ने उनका अपहरण कर लिया। श्रीराम ने रावण का अंत कर माता सीता को मुक्त किया। वे अयोध्या आए और राजभोग किया लेकिन गर्भवती माता सीता को फिर जंगलों में जाना पड़ा। वन में ही उनके दो पुत्र लव-कुश हुए और अंतत: माता सीता फिर धरती में समा गईं। वाल्मिकी रामायण में दिए गए विवरण के अनुसार माता सीता को महज 18 साल की आयु में वनवास का कष्ट भोगना पड़ा था। वाल्मीकि रामायण में एक श्लोक है जिसमें स्वयं सीता को अपनी आयु की जानकारी देते हुए उद्धृत किया गया है। यह श्लोक है- मम भर्ता महातेजा वयसा पंचविंशक:। अष्टादश हि वर्षाणि मम जन्मनि गण्यते।। श्लोक का भावार्थ है कि माता सीता बता रहीं है कि वनवास के समय मेरे पति 25 साल के थे और वनगमन के साथ वे स्वयं 18 साल की थीं।  में यह बात भी स्पष्ट होती है कि सीताजी प्रभु श्रीराम से सात साल छोटी थीं।
सीताजी के साथ एक और संयोग जुड़ा हुआ है। वे कई बार अग्रि में समाई थीं। पूर्व जन्म में वे एक तपस्विनी थीं जों रावण की दुष्टता के कारण अग्रि में समा गई थीं। वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि रावण एक बार अपने पुष्पक विमान से कहीं जा रहा था तभी उसे वेदवती नामक सुंदर स्त्री दिखाई दी। तपस्यारत वेदवती को देख रावण मोहित हो उठा और उनके बाल पकड़कर अपने साथ ले जाने लगा। वेदवती क्रोधित हो उठीं और उन्होंने रावण को श्राप दिया कि एक नारी ही तेरी मौत का कारण बनेगी। रावण को शाप देकर वेदवती अग्नि में समा गई और दूसरे जन्म में माता सीता के रूप में जन्मीं।
जिस दिन रावण सीता का हरण कर अपनी अशोक वाटिका में लाया। उसी रात को भगवान ब्रह्मा के कहने पर देवराज इंद्र माता सीता के लिए खीर लेकर आए, पहले देवराज ने अशोक वाटिका में उपस्थित सभी राक्षसों को मोहित कर सुला दिया। उसके बाद माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके खाने से सीता की भूख-प्यास शांत हो गई।
खीर खाने से हुई भूख-प्यास शांत

वाल्मिकी रामायण में लिखा गया है कि कैसे देवराज इंद्र ने रावण की अशोक वाटिका जाकर माता सीता को खीर अर्पित की। इस वृतांत के अनुसार रावण सीताजी का अपहरण कर जिस दिन उन्हें अशोक वाटिका लाया उसी रात देवराज आए और वाटिका की रक्षा में लगे सभी राक्षसों को सुला दिया। बाद में उन्होंने माता सीता को खीर अर्पित की, जिसके बाद माता सीता की भूख-प्यास शांत हो गइ थी।

Sita Swayamvar !! सीता स्वयंवर !! Full Episode !! Ramanand Sagar's Ramayan in HD 


स्वयंवर में नहीं टूटा था शिवधनुष

वाल्मीकि रामायण की सबसे खास बात यह है कि इसमें सीता स्वयंवर का उल्लेख ही नहीं है। वाल्मिकी रामायण के अनुसार भगवान राम ने स्वयंवर में शिवधनुष नहीं तोड़ा था बल्कि इसका प्रसंग अलग है। श्रीराम, लक्ष्मण को लेकर ऋषि विश्वामित्र मिथिला गए राजा जनक ने उन्हें शिवधनुष दिखाया। श्रीराम ने उस चमत्कारिक धनुष को यूं ही उठा लिया और वह टूट गया। तब राजा जनक ने अपनी इस प्रतिज्ञा के अनुसार कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह करेंगे,

   त्रेता युग में राम की जीवन संगनी बनीं माता सीता जनकनंदिनी के रूप में जानी जाती हैं, पर उनकी उत्पत्ति को लेकर कई वृत्तांत हैं। कहीं उन्हें लक्ष्मी के अवतार पद्या के रूप में बताया गया है, तो कहीं मंदोदरी की पुत्री के रूप में उनका उल्लेख मिलता है। यहां तक कि जिस रावण ने उनका हरण किया था, कुछ ग्रंथों में उन्हें उसी रावण की पुत्री बताया गया है। हालांकि इन अलग-अलग वृतांतों में एक तथ्य समान रूप से सामने आता है।

नाम से जुड़ा है यह रहस्य

ज्योतिषाचार्य पं. आसुतोष दीक्षित के अनुसार संस्कृत में हल को सीत और हल से बनी जुताई की रेखा को सीता कहते हैं। सीता जी हल जोतने के दौरान ही कन्या रूप में मिलीं, इसलिए उन्हें सीता कहा गया। सीताजी को यह नाम राजा जनक ने ही दिया था। इस संबंध में कथा यह है कि मिथिला को अकालमुक्त करवाने के लिए उनके गुरु ने राजा जनक और उनकी पत्नी सुनयना से खेत में जुताई करने को कहा। उनके परामर्शानुसार वे हल चला रहे थे तभी जमीन में से सोने का एक बक्सा निकला जिसमें एक अतिसुंदर बालिका मिली। राजा जनक उस बालिका को महल में ले गए तभी वर्षा होने लगी और अकाल खत्म हो गया। राजा जनक ने उस कन्या को पुत्री के रूप में अपनाकर उनका नाम सीता रखा।


मंदोदरी ने फिंकवा था  भ्रूण

मानस मर्मज्ञ पं. प्रकाशदत्त शास्त्री के अनुसार अद्भुत रामायण में उल्लेख है कि सीताजी वास्तव में मंदोदरी की पुत्री थीं। इसमें लिखा गया है कि रावण ऋषि-मुनियों का वध कर उनका रक्त एक घड़े में एकत्र करता था। उसी समय ऋषि गृत्समद लक्ष्मी जैसी पुत्री की कामना से तपस्या कर रहे थे। वे दूर्बा घास का दूध निकाल एक घड़े में एकत्रित कर रहे थे। एक दिन रावण उनके आश्रम में पहुंचा और वह घड़ा उठा ले गया। उसने वह दूध ऋषियों के रक्त वाले घड़े में डाल दिया और मंदोदरी को यह कहकर छिपा कर रखने को कहा कि इसमें भयानक विष है। एक दिन मंदोदरी ने रावण के आचरण से परेशान होकर आत्महत्या करने की सोची और उस घड़े में रखा द्रव्य पी गई। इससे वे गर्भवती हो गई। उन्होंने घबराकर वह भ्रूण एक बक्से में रखवाकर फिंकवा दिया। संयोग से वह बक्सा मिथिला पहुंच गया और जनक को हल चलाते समय मिला।

रावण की पुत्री थी सीता ?  Sita was Daughter of Ravan ? 

 Ravan ki beti sita



रावण की पुत्री थीं सीता

ज्योतिषाचार्य पं. राजकुमार शर्मा के अनुसार देवी भागवत की एक कथा में उल्लेख मिलता है कि सीताजी रावण की ही पुत्री थीं। इसके अनुसार रावण का विवाह जब मंदोदरी से हुआ तब दानवराज मय ने रावण को एक राज बताया। उसने बताया कि मंदोदरी की जन्मपत्रिका के अनुसार उसकी पहली संतान के कारण कुल नाश होगा अत: जो पहली संतान हो उसे कहीं फेक देना या फिर मार देना।  मंदोदरी की पहली संतान के रूप में पुत्री हुई तो उसे एक बाक्स में डाल मिथिला की भूमि में गड़वा दिया। वही बक्सा राजा जनक को हल चलाते समय मिला था।

 लक्ष्मी की अवतार

आचार्य विद्वानों के अनुसार आनंद रामायण में माता सीता को लक्ष्मीजी का अंशावतार माना गया है। इसमें कहा गया है कि पद्याक्ष नामक राजा की पुत्री पद्या माता लक्ष्मी की अंशावतार थीं। पद्या के विवाह के लिए राजा ने स्वयंवर का आयोजन किया लेकिन कठिन शर्तें रखी। इससे कु्रद्ध राजाओं ने पद्याक्ष को मार डाला और उनका राज्य तहस-नहस कर दिया। पिता की हत्या से क्षुब्ध होकर पद्या ने अग्रिकुंड में प्रवेश कर लिया। एक दिन वे अग्रिकुंड से बाहर बैठी थीं तब रावण वहां से गुजरा।  रावण ने पद्या को अपने साथ चलने को कहा तो पद्या ने अग्रिकुंड में प्रवेश कर लिया। रावण ने आग बुझाई तो पद्या तो नहीं मिलीं लेकिन वहां एक स्वर्ण संदूक मिला। जब रावण ने उस संदूक को मंदोदरी के सामने खोला तो उसमें कन्या पद्या बैठी थीं। रावण ने मंदोदरी को बताया कि इस कन्या के कारण इसके कुल का विनाश हो गया। इस पर मंदोदरी डर गई उसने सोचा कि जिस कन्या से उसका कुल का सर्वनाश हो गया उसकी वजह से हमारी दुनिया भी न उजड़ जाए। रावण के सैनिक उस संदूक को मिथिला में भूमि में गढ़ा आए जोकि राजा जनक को हल जोतते समय मिला था।

पराशक्ति हैं माता सीता

विद्वानों का मत है कि सीता जी परब्रम्ह परमेश्वर की ही पराशक्ति हैं, जो हर युग में अपनी एक भूमिका तय करके परमात्मा के सहयोग के लिए धरातल पर आती हैं। राधा की तरह सीता भी पराशक्ति थीं। वन गमन के दौरान जहां वे भगवान राम की छाया शक्ति रहीं वहीं दानवों के विनाश में उनकी वैराग्य और ब्रम्हशक्ति का तेज ही काम पर आया। यदि सीता अशोक वाटिका में वैराग्यणी के रूप में तप नहीं करतीं तो रावण को मार पाना असंभव था। पूर्व नियोजित भूमिका के तहत ही वे अन्याय रूपी रावण के वध का कारण बनने और राम की शक्ति बनने के लिए लंका पहुंची थीं। पुत्री, पत्नी, शक्ति और मां समेत हर रूप में सीता वंदनीय हैं। 

રવિવાર, 2 ડિસેમ્બર, 2018

रामायण की अनजानी बातें


रामायण की  अनजानी बातें, जो आपको जानना चाहिए

मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम के प्रभावशाली चरित्र पर कई भाषाओं में ग्रंथ लिखे गए हैं। लेकिन मुख्यतः दो ग्रंथ प्रमुख हैं। जिनमें पहला ग्रंथ महर्षि वाल्मीकि द्वारा 'रामायण' इस पवित्र ग्रंथ में 24 हजार श्लोक, 500 उपखंड, तथा 7 कांड है।

दूसरा ग्रंथ गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित है जिसका नाम 'श्री रामचरित मानस' है। इनमें महर्षि वाल्मीकि की को सबसे सटीक और प्रामाणिक माना जाता है। लेकिन श्रीराम के बारे में कुछ ऐसी बातें हैं जिनका विवरण श्रीया अन्य रामायण में नहीं है। इनका विस्तृत विवरण केवल वाल्मीकि कृत रामायण में है।

श्रृंगी ऋषि का हिरनी के गर्भ से जन्म लेने और भगवान् श्री राम की बहन से विवाह की सम्पूर्ण कहानी !!

1  रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ को मुख्य रूप से ऋषि ऋष्यश्रृंग ने संपन्न किया था। ऋष्यश्रृंग के पिता का नाम महर्षि विभाण्डक था। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे तब नदी में उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था, जिसके फलस्वरूप ऋषि ऋष्यश्रृंग का जन्म हुआ था।

33 करोड़ देवी देवताओं का सच जानकर हैरान रह जाएंगे


हिंदू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं की मान्यता है, जबकि रामायण के अरण्यकांड के चौदहवे सर्ग के चौदहवे श्लोक में सिर्फ तैंतीस देवता ही बताए गए हैं। ग्रंथ के अनुसार बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनी कुमार, ये ही कुल तैंतीस देवता हैं।

Sita Swayamvar !! सीता स्वयंवर !! Full Episode !! Ramanand Sagar's 

Ramayan in HD 



3 महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित 'रामायण' में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है। रामायण के अनुसार भगवान राम व लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ मिथिला पहुंचे, तब विश्वामित्र ने ही राजा जनक से श्रीराम को वह शिवधनुष दिखाने के लिए कहा। तब भगवान श्रीराम ने उस धनुष को उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। राजा जनक ने यह प्रण किया था कि जो भी इस शिव धनुष को उठा लेगा, उसी से वे अपनी पुत्री सीता का विवाह कर देंगे।

नलकुबेर का रावण को श्राप !!! 

nalkuber ka ravan ko shrap


4 विश्वविजय के दरम्यान जब रावण स्वर्ग लोक पहुंचा तो उसे रंभा नाम की अप्सरा दिखाई दी। रावण ने उसे पकड़ लिया। तब रंभा ने कहा कि आप मुझे इस तरह से स्पर्श न करें, मैं आपके बड़े भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर के लिए हूं। इसलिए मैं आपकी पुत्रवधू हूं, लेकिन रावण नहीं माना और उसने रंभा से दुराचार किया। यह बात जब नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि आज के बाद रावण बिना किसी स्त्री की इच्छा के उसे स्पर्श करेगा तो उसके सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे।

सुपर्णखा ने दिया रावण को सर्वनाश होने का श्राप


प्रभु राम के भाई लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा के नाक-कान काटे जाने से क्रोधित होकर ही रावण ने सीता का हरण किया था, लेकिन स्वयं शूर्पणखा ने भी रावण का सर्वनाश होने का शाप दिया था। दरअसल शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को शाप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।


સોમવાર, 12 નવેમ્બર, 2018

mahabharat


महाभारत में कहा गया कुरुक्षेत्र युद्ध और कौरवों और पाण्डवों के प्रधानों की नियति का एक महाकाव्य पौराणिक कथा है। यह भी इस तरह के या पुरुषार्थ (12.161) चार "जीवन के लक्ष्यों को" की चर्चा के रूप में, दार्शनिक और भक्ति सामग्री शामिल है। महाभारत में प्रिंसिपल काम करता है और कहानियों के अलावा भगवद गीता, दमयंती, रामायण का एक संक्षिप्त संस्करण की कहानी है, और Ṛṣyasringa की कहानी है, अक्सर अपने आप में काम करता है के रूप में माना जा सकता है।

परंपरागत रूप से, महाभारत के ग्रन्थकारिता व्यास को जिम्मेदार ठहराया है। वहाँ इसके ऐतिहासिक विकास और compositional परतों को जानने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। पाठ का सबसे पुराना संरक्षित भागों, लगभग 400 ईसा पूर्व की तुलना में बहुत पुराने नहीं माना जाता है, हालांकि महाकाव्य के मूल शायद 8 वीं और 9 वीं सदी ईसा पूर्व के बीच गिर जाते हैं।  पाठ शायद जल्दी गुप्त काल (सी। 4 शताब्दी सीई) अंतिम रूप से अपनी पहुंच गया। महाभारत में कहा गया खुद के अनुसार, कहानी बस भरत नामक 24,000 छंद के संक्षिप्त संस्करण से बढ़ा दिया गया है।


महाभारत में कहा गया सबसे लंबे समय तक महाकाव्य प्रसिद्ध कविता है और "सबसे लंबे समय तक कविता अब तक लिखी" के रूप में वर्णित किया गया है।  इसकी सबसे लंबे समय तक संस्करण 100,000 से अधिक श्लोक या 200,000 से अधिक अलग-अलग कविता लाइनों (प्रत्येक श्लोक एक दोहे है), और लंबे समय गद्य मार्ग के होते हैं। कुल में के बारे में 18 लाख शब्दों में, महाभारत लगभग दस बार इलियड और ओडिसी की लंबाई संयुक्त, या के बारे में चार बार रामायण की लंबाई है।  डब्ल्यू जे जॉनसन बाइबिल, विलियम शेक्सपियर का काम करता है, होमर, ग्रीक नाटक, या कुरान का काम करता है की है कि विश्व सभ्यता के संदर्भ में महाभारत के महत्व की तुलना में है।  भारतीय परंपरा के भीतर यह कभी कभी पांचवें वेद कहा जाता है

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